Monday, May 24, 2021

अकेलेपन की साथी कविता

 जहाँ न पहुँच सकता है सविता

         

अकेलेपन  की साथी  कविता।

जहाँ न पहुँच सकता है सविता।

सुनती, रोती, गाती है  जो,

मेरी सखी,  सहेली कविता।


कोई न मेरी बात है सुनता।

मैं  अपने सपनों को बुनता।

संग-साथ  ना कविता छोड़े,

भाव-शब्द, निश-दिन हूँ चुनता।


कविता ने है, मुझे सँवारा।

पीड़ा में  है,  मुझे दुलारा।

हृदय से मेरे, निकल के आई,

जब-जब मैंने, उसे पुकारा।


कविता ने है, स्नेह लुटाया।

कभी नहीं, धन मान जुटाया।

हृदय में मेरे,  बसी हुई है,

कभी नहीं,  अधिकार जताया।


प्रेमिका जैसी, माँग नहीं है।

पत्नी की तकरार  नहीं है।

भावानुगामिनी  मेरे उर की,

किसी की करे परवाह नहीं है।


संबन्धों से पीड़ित जब होता।

बंधनों से, जब, है मन रोता।

कविता के आँचल में छिप,

लगाता प्रेम सुधा में गोता।


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