जी भर रोया!!
श्री तेजपाल शर्मा, मथुरा
पाणिग्रहण की /रीति पूर्ण कर
सात वचन औ'/सात फेरों की/
रीति पूर्ण हुई/सजधज कर/
जब बेटी मेरी/चलने को तैयार /खड़ी थी/
कुछ मंगल गीतों की/धुन को कुछ महिलाएँ /ध्वनित कररही।
बेटी धीर धीरे/उनके साथ बढ़ रही।
पास में आई/मेरे तो मन व्यथित हुआ था/
देखा मेरे पार्श्व में/मेरा छोटा भाई/
विगलित होकर/अश्रु बहाकर/
बहुत दुखी था।
उसे देख/मैंने अपने /आंसुओं को रोका
जैसे मानो/हृदयहीन/
पाषाण हृदय मैं
और
चाहकर भी मैं/इस क्षण रो न सका था।
कैसे रोता?
विकट प्रश्न था/
सबसे बड़ा/सभी को /मुझको ही तो/
सब कुछ समझाना था।
मुड़कर/बेटी मेरे संमुख/
जब थी आई/
खुश रहो!
खुश रहो!!
की आशीष/मैंने दुहराई
और
गटक कर/सारे आंसू/पूर्ण वेदना
बेटी को/पाषाण हृदय /
दे रहा विदाई।
तो
क्या मैं/
कोई हृदयहीन/पाषाण हृदय था???
नहींं
नहींं/मैं सरल हृदय हूं/
अति भावुक हूं।
कोई पूछे
मुझसे /
कैसे?
सहन कर सका??
अपनी पीड़ा/
नहीं बहा/पाया मैं आंसू
किंतु
विदाई की वेला/बिटिया की देखी
सबसे छिपकर
विलख विलख कर/
जी भर रोया!
जी भर रोया!!
औ'
बेटी की विदाई/
पर मैं
सचमुच रोया!
जी भर रोया!!
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