Wednesday, May 26, 2021

बेटी की विदाई

जी भर रोया!!

                      श्री तेजपाल शर्मा, मथुरा


पाणिग्रहण की /रीति पूर्ण कर

सात वचन औ'/सात फेरों की/

रीति पूर्ण हुई/सजधज कर/

जब बेटी मेरी/चलने को तैयार /खड़ी थी/

कुछ मंगल गीतों की/धुन को कुछ महिलाएँ /ध्वनित कररही।

बेटी धीर धीरे/उनके साथ बढ़ रही।


पास में आई/मेरे तो मन व्यथित हुआ था/

देखा मेरे पार्श्व में/मेरा छोटा भाई/

विगलित होकर/अश्रु बहाकर/

बहुत दुखी था।


उसे देख/मैंने अपने /आंसुओं को रोका

जैसे मानो/हृदयहीन/

पाषाण हृदय मैं

और 

चाहकर भी मैं/इस क्षण रो न सका था।

कैसे रोता?

विकट प्रश्न था/

सबसे बड़ा/सभी को /मुझको ही तो/

सब कुछ समझाना था।


मुड़कर/बेटी मेरे संमुख/

जब थी आई/

खुश रहो!

खुश रहो!!

की आशीष/मैंने दुहराई


और 

गटक कर/सारे आंसू/पूर्ण वेदना

बेटी को/पाषाण हृदय /

दे रहा विदाई।


तो

क्या मैं/

कोई हृदयहीन/पाषाण हृदय था???

नहींं

नहींं/मैं सरल हृदय हूं/

अति भावुक हूं।

कोई पूछे

मुझसे /

कैसे?

सहन कर सका??

अपनी पीड़ा/

नहीं बहा/पाया मैं आंसू

किंतु

विदाई की वेला/बिटिया की देखी

सबसे छिपकर

विलख  विलख कर/

जी भर रोया!


जी भर रोया!!


औ'

बेटी की विदाई/

पर मैं

सचमुच रोया!

जी भर रोया!!

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