Wednesday, June 10, 2009

खड़े हैं कब से चौराहे पर, नजारा ही बदल गया।

मुक्तक पढें होकर मुक्त

खड़े हैं कब से चौराहे पर, नजारा ही बदल गया।

करते-करते इन्तजार, जमाना ही बदल गया।

परीक्षा लोगी कब तक? हमारे इस जीवट की,

आ जाओ एक बार, तुम्हारा हुलिया ही बदल गया।


न देखा तुमने मुड़ के, हम दीदार न कर सके।

चाहा था हमने तुमको, तुम इन्कार न कर सके।

तुम नहीं हो हमारी अमानत, स्वीकार है हमें,

नादान हैं तुम्हें छोड़कर, प्यार ना कर सके।


हमारे दिल में है क्या हम इजहार ना कर सके।

तुम बैठे हमारे सामने, हम दीदार ना कर सके।

ठोकरें ही थीं पथ में, हम थे उसी गम में,

चाहकर भी हम तुमसे, इकरार ना कर सके।


बीत गये वे दिन रावी का बह गया वह पानी।

गुलिश्ता उजड़ गया, छाई है यहाँ वीरानी।

क्या करेगी आकर ? हे तितली! संभल जा,

नहीं है यहाँ राजा, न बन सकेगी तू रानी।


दर पर खड़े तुम्हारे हम घण्टी ना बजायेंगे।

तुमको खुश करने को, ना अपने को सजायेंगे।

इकरार और इंकार सब छोड़ते हैं तुम पर,

तुम्हारे गम में डूबे, नहीं अपने को बचायेंगे।


चाहा था तुमको हमने , करते रहे तुम्हें प्यार।

बीती हैं वर्षों देखो, नहीं कर सके हम दीदार।

कहा था तुमने ही, पत्थर भी हैं दुआ देते,

राष्ट्रप्रेमी बना पत्थर? आ के, कर जाओ इजहार।


नहीं थी आरजू फिर भी, तुम्हें दिल में बसाया।

दिल में हमारे बैठकर, हमें ही सताया।

तुम्हारी मुस्कराहट पर जीवन है निछावर,

काँटो में फूल खिले, जब भी तुमने मुस्काया।

1 comment:

  1. चाहा था तुमको हमने , करते रहे तुम्हें प्यार।

    बीती हैं वर्षों देखो, नहीं कर सके हम दीदार।

    कहा था तुमने ही, पत्थर भी हैं दुआ देते,

    राष्ट्रप्रेमी बना पत्थर? आ के, कर जाओ इजहार।
    ......बहुत खूब

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