भारत भव्य बनाना है।
सहने पड़े कष्ट कितने भी, आगे बढ़ते जाना है।
हम दिन चार रहें न रहें,पर भारत भव्य बनाना है।।
रहे न कोई भूखा यहाँ पर कोई वस्त्र विहीन न हो।
शोषित पीड़ित रहे न कोई, कोई व्यक्ति दीन न हो।
कण्टक पूरित मारग अपना, अविचल चलते जाना है।
हम दिन चार रहें न रहें,पर भारत भव्य बनाना है।।
शास्त्र-शस्त्र दोनों ही को हम, खुशी-खुशी अपनायेंगे।
शस्त्र तो रक्षा के हित केवल , विश्व को पाठ पढ़ायेंगे।
पश्चिम से साँस्कृतिक युद्ध है, युवकों को समझाना है।
हम दिन चार रहें न रहें,पर भारत भव्य बनाना है।।
सदियों से संस्कृति चादर में कुछ धब्बे जो ठहर गये।
अमृत भरे घड़े अपने थे इन्हीं के कारण जहर भये।
विवेक त्याग के साबुन से अब चादर को चमकाना है।
हम दिन चार रहें न रहें, पर भारत भव्य बनाना है।।
देवासुर संग्राम तो भाई ,युग-युग से होता आया है।
नैतिकता जिसने अपनाई यश उसने ही पाया है।
भारत माँ की आज्ञा से अब कदम से कदम मिलना है।
हम दिन चार रहें न रहें,पर भारत भव्य बनाना है।।
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