चहुँ ओर व्यापार बढ़ रहा।
संबंधों का बाजार सज रहा।
दौलत संबंधों पर हावी,
मानव मन मिट-मिट मिट रहा।
वात्सल्य नीलाम हो रहा।
मातृत्व का मान मिट रहा।।
भाव बिना संबंध हैं बनते।
प्यार के नाम धोखे हैं सजते।
प्रेमी हैं , तेजाब से जलते,
दहेज के झूठे केस हैं चलते,
रेप रेप बस रेप हो रहा।
मातृत्व का मान मिट रहा।।
प्रेम नाम व्यापार हो रहा।
बाजार में विश्वास बिक रहा।
भावना से स्टेज सज रहा।
नारी तन, व्यापार बढ़ रहा।
देवी का सम्मान गिर रहा।
मातृत्व का मान मिट रहा।
नारी भी मातृत्व है तजती।
लज्जा से वह अब नहीं सजती।
षड्यंत्रों की बनकर देवी।
प्रेम नाम ले, नर को छलती।
प्रतिस्पर्धा में घर है जल रहा।
मातृत्व का मान मिट रहा।
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