काश! हम भी होते, किसी के लिए खास! कोई, हमारे लिए भी, करती अरदास। कोई, हमें भी, करती पसंद, डालती हमें भी, प्रेम की गुलाबी घास। मिलाती, हमारे साथ छन्द, नहीं रहने देती, हमें स्वच्छन्द। काश! हमारा भी करती कोई इंतजार उमड़ता हमारे लिए भी, थोड़ा सा प्यार, बनती, जीवन का आधार। काश! कोई, हमें भी, देर हो जाने पर, करती बार-बार फोन। और हम, उसकी डाँट खाकर, हो जाते मौन। हमारे कार्य में, व्यस्त होने के कारण, फोन न उठा सकने पर हो जाती नाराज। और हमें, उसे मनाने के लिए, उठाने पड़ते, उसके नाज। काश! हमारे भी, ऐसा होता, एक घर, और एक घरवाली, हमारा साथ पाने को, वह रहती मतवाली और हमें पिलाती, प्रेम-सुधा की प्याली। काश!
उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों के छात्र संख्या के आधार पर मर्जर नीति
पर एक प्राथमिक अध्यापक के उद्गार
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जितेन्द्र कुमार गौड़
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1 month ago
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