नारी! प्रकृति का सार है
डाॅ.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
सृष्टि का आधार प्रकृति है, नारी! प्रकृति का सार है।
बीज रूप है, पुरूष प्रकृति का, नारी! सृजन आधार है।।
काले-काले केश घटाएँ।
इंद्र धनुष सौन्दर्य छटाएँ।
भावों की लहरें, उर में ज्यों,
सागर की लहरें, लहराएँ।
पर्वत शिखरों को, मात जो देते, वक्ष स्थल के उभार हैं।
सृष्टि का आधार प्रकृति है, नारी! प्रकृति का सार है।।
सुरख लाल हैं, अधर तुम्हारे।
कपोल लालिमा, अलग पुकारे।
दीर्घ श्वांस संग, उरोज भी डोलें,
उर में हा! हा! कार मचा रे।
प्रेम लता, कलि, पुष्प बन खिलती, नर के गले का हार है।
सृष्टि का आधार प्रकृति है, नारी! प्रकृति का सार है।
 
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