हम करते ऐसी दुआ, मिट जायें सब रोग।
सुबह शाम घूमों जरा, कर लो हल्का योग॥
किताबों में कुछ तथ्य हैं, कुछ अनुभव हैं मीत।
शिक्षा इसको कह रहे, सब गाते हैं गीत॥
अपना कोई है नहीं, बिखर पड़े हैं राह।
ठोकर से आगे बढ़ें, निकल जात है आह॥
जिसका कोई मित्र ना, साथ हमारे आय।
हानि-लाभ को छोड़ कर, दो पल जी लें गाय॥
अपना-अपना करत ही, जीवन जाता खोय।
साथ साथ कुछ चलत हैं, अन्त अकेले होंय॥
हम खुद के ना हो सके, औरों से क्या आस?
अपना अपना चुग रहे, ना आवत हैं पास॥
जब तक पूरी आस हो, अपना है वह मित्र।
काम होत ही जायगा, देखत रहना चित्र॥
मनुष्य संपदा है नहीं, नहीं किसी का दास।
कोई किसी का है नहीं, सबकी अपनी आस॥
कोई तुम्हारा नहीं, रोते हो दिन-रात।
तुम किसके हो सोच लो, मन की कह दो बात॥
इच्छा किसी की आज तक, पूरी न हुई मित्र।
कल्पना से कविता बने, बन जाते हैं चित्र॥
साथ किसी के हैं नहीं, सबकी अपनी राह।
हम तो तुम्हारे साथ हैं, कह करते गुमराह॥
जो चाहे लिखते रहो, पढ़ लेते कुछ लोग।
सब अपने मन की करें, अपना अपना भोग॥
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