अवसर आवत हाथ में, सभी उठावें लाभ।
अपना कह कर लूटते, लेते हैं परिलाभ॥1012॥
प्रेम और समर्पण कर, इक दूजे को मात।
बेचत या फ़िर ठगत हैं, इक दूजे का गात॥1013॥
झूठ और बस झूठ ही, बोलत हैं कुछ लोग।
बिना स्वार्थ भी बोलते, झूठ लगाते भोग॥1014॥
ना कोई साथी रहा, ना कोई है मीत।
जो भी मिलता प्रेम से, अन्दर से भयभीत॥1015॥
लोग दिखावत प्रेम है, गात प्रेम के गीत।
जितने आते पास हैं, हम उतने भयभीत॥1016॥
जीत-हार सब व्यर्थ हैं, ना है धन की चाह।
कोई अपना है नहीं, सभी चलत निज राह॥1017॥
इक दूजे को वचन दे, थाम लिया था हाथ।
छल, कपट और झूठ ने, झुका दिया है माथ॥1018॥
प्रेम समर्पण नाम ले, रंग-रंग के भाव।
धोखा दे छल कपट से, दिखा दिए फ़िर ताव॥1019॥
हमने तो चाहा नहीं, यूं नारी का साथ।
छल, कपट और झूठ से, पकड़ा काटा हाथ॥1020॥
नर नारी को चाहता, सब कुछ देता बार।
माया में फ़ंस कर मिटे, नारी से ना पार॥1021॥
प्रेम नहीं सम्पत्ति है, नहीं हो सके लूट।
प्रेमी जन में लोभ ना, नहीं पड़त है फ़ूट॥1022॥
प्रेम चाह सबको रही, नहीं हो सकी लूट।
जो भी इसको लूटता, प्रेम जात है रूठ॥1023॥
प्रेम होत सौदा नहीं, ना कोई है आन।
गलती पग-पग होत है, क्षण-क्षण पकड़ें कान॥1024॥
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