Wednesday, May 4, 2016

आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुःख होय

संतो देखो जग बौराना। 

साँच कहे ते मारन धावै, झूठे जग पतियाना।

कबीरदास बड़े ही पहुँचे हुए संत थे। उन्होंने उस समय जो कहा था, संसार आज भी वैसा ही बौराया हुआ है। जो सच बोलता है, लोग उसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाते हैं और जो झूठ बोलता है उसका सम्मान करते हैं, उसके बहकाबे में आकर उस पर विश्वास करते हैं। कबीरजी की एक उलटवासी बड़ी सत्य मालुम पड़ती है।


चलती को गाड़ी कहें, सार तत्व को खोया।

रंगी को नारंगी कहें, देख कबीरा रोया।।


कबीरदास की बात वास्तव में सच है। उनका वाणी के वह स्वयं ही साक्षी नही वरन समय साक्षी है। मेरे व्यक्तिगत अनुभव में कई बार कबीर की वाणी सिद्ध हो चुकी है। एक बार कर्तव्यपालन करते समय सरकारी भण्डार से चोरी करके ले जा रहे सामान को रोकने की कोशिश की तो चोरी करके ले जाने वाले से यह लिखवा लिया गया कि मैं ही उसे अपने यहाँ सामान पहुँचाने के लिए विवश कर रहा था। जो वास्तव में दोषी थे, उनका कुछ नहीं हुआ और मुझे ही प्रताड़ना व करियर में हानि का सामना करना पड़ा। इस प्रकार कबीर की वाणी सच-प्रतिशत सच हुई। दूसरी बार विद्यार्थी जीवन से ही दहेज के विरोध में लेखन करते रहने, महिला अधिकारों का प्रबल समर्थक रहने, दहेज के लेन-देन वाली शादी में भाग न लेने का संकल्प करने व उसका पालन करने के प्रक्रम में अपने भाई-बहनों की शादी में भी भाग न ले सकने के बाबजूद दहेज के झूठे मुकदमों का सामना करने को मजबूर हो गया। तथाकथित पत्नी ने एक भी रूपया, कोई वस्तु या कोई भी खाद्य पदार्थ स्वीकार न करने के बाबजूद न केवल धन वसूलने के लिए झूठा मुकदमा दर्ज करवा दिया वरन् दण्ड के रूप में 23 वर्ष के कारागार की धाराएँ भी लगाईं। अब देखने की बात है कि झूठा मुकदमा अदालत में कितना टिकता है। साँच को आँच नहीं वाली कहावत सत्य सिद्ध होती है या हमारी तथाकथित पत्नी हमें जेल भिजवाकर आनंद की अनुभूति करती हैं। हाँ! हम प्रत्येक स्थिति के लिए तैयार हैं। कारागार में रहकर भी हम आनन्दित ही रहेंगे क्योंकि कबीरजी के अनुसार-

कबिरा आप ठगाइये, और न ठगिये कोय।

आप ठगे सुख  होत है, और ठगे दुःख होय।।

 निसंदेह कबीरदास ने जो बात उस समय कहीं थी, वह आज भी सत्य है और मेरा विचार है कि वह सार्वकालिक है और सदैव सत्य रहेगी। चूँकि मैंने किसी को नहीं ठगा है, कोई गलत काम नहीं किया है, तो आत्मसन्तुष्टि के कारण मुझे तो कोई चिंता नहीं है। चाह गयी, चिंता गयी; मनुआ बेपरवाह। जाको कछू न चाहिए, वो ही शहंशाह।।

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