Sunday, April 24, 2016

चिन्ता उनकी मत करे, जो हैं धोखेबाज


कहना कितना सरल है, लोभ मोह दो त्याग।

त्यागी भी देखे गये, करते भागम-भाग॥


पूजा का नाटक करें, नहीं फ़ेथ है ईश।

धन के हित सब छोड़ते, झूठ हुआ जगदीश॥


लोभ मोह ना तज सके, कपड़े गेरुआ रंग।

ढोंगी यह संन्यास नहीं, फ़्री की पीते भंग॥


सच-झूठ दोनों का ही, साथ-साथ अस्तित्व।

झूठ पाकर न खुश रहा,सच लुट भी स्वामित्व॥


सच और झूठ संघर्ष में, झूठ न समझे पाप।

सच लुट कर आनन्द में, खुशी आप ही आप॥


चोट नहीं जीवन हरे, जिजीविषा जो होय।

गिर कर जो फ़िर चल पड़े, जीत उसी को होय॥


हम फ़िर से जी जायंगे, आगे बढ़ फ़िर हाथ।

तू चिन्ता फ़िर क्यों करे, मा-बाप हैं साथ॥


चिन्ता उनकी मत करे, जो हैं धोखेबाज।

जो तेरी चिन्ता करें, वह ही तेरे साज॥


लोभ मोह को त्याग कर, जीवन का रस बांट।

नहीं किसी का अहित कर, सबके हित तू छांट॥


स्वार्थ छ्ल ईर्ष्या तजें, सबके हित सुविचार।

जो करता वह पायगा, क्यों रखें कुविचार॥


क्या लाया ले जायगा, क्यूं कर तू पछ्ताय।

चिन्ता सबकी छोड़कर, बढ़ आगे हरषाय॥


जीवन तो एक खेल है, जी भावै तू खेल।

अपनी पाली खेल तू, कर न किसी से मेल॥


सबकी चाहत त्याग दे, चल मस्ती की राह।

दर्द में भी न आह कर, करता चल तू वाह॥


पथिक पथ में आनन्द है, रस न मिले गन्तव्य।

जीवन यात्रा सुखद है, अन्त न हो मन्तव्य॥


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