Tuesday, April 19, 2016

अविश्वास और छल कपट, नहीं प्रीति की रीत

जिसको अपना कहत है, वही पराया होय।

अवसर पाकर जगत में, मित्र भी वैरी होय॥


अपना नहीं है कोई, यह अवसर की बात।

प्राणों से प्यारा कहें, प्राणों पे है घात॥


अपने रस्ते आगे बढ़, अविचलता ही अस्त्र।

तेरे कह विचलित करें, उतारें तेरे वस्त्र॥


राष्ट्र हित जीना तुझे, नहीं जरूरी जंग।

    अपना हित तू मर्ज कर, राष्ट्र के हित के संग॥


राष्ट्र नहीं बस नारा है, जन-जन इसका अंग।

भारत की जय बस नहीं, पी ले कर्म की भंग॥





कानून नहीं विश्वास है, यही प्रीति की जीत।

       अविश्वास और छल कपट, नहीं प्रीति की रीत॥

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