वह भी
हमरे मित्र हैं, जो
करते हैं वार।
दुर्गुण हमारे दूर कर, खुद होते बेजार॥
चहुं
ओर विस्तीर्ण है, स्वार्थों
का संसार।
इसके बिन जीवन नहीं, सह जितने हैं वार॥
स्वार्थ
का खेल जगत में, स्वारथ
के नाते है।
परमारथ का नाम भी, स्वार्थ हित गाते हैं॥
स्वार्थ
है सार जगत में, सम्बन्धों
का चित्र।
मत गरियाओ स्वार्थ को, यही बनाता मित्र॥
तू तो
है लूटा गया, तू न
किसी को लूट।
तुझे झूठ बोला गया, बोल न फ़िर भी झूठ॥
अन्दर
ही आनन्द है, बाहर
क्यूं फ़िर खोज।
जहां-जहां तू जायगा, मिले लुटेरी फ़ोज॥
भंवरों
का आनन्द लें, तज तट
का तू मोह।
सबको अपना मान ले, ना संग साथ विछोह॥
तू
कांटों के साथ जी, ना
फ़ूलों को खोज।
चन्द क्षणों को पुष्प हैं, कांटों के संग मौज॥
ईर्ष्या, द्वेष, नफ़रत तज, तज ज्ञान और मान।
नहीं साथ की चाह कर, खुद्दारी ही शान॥
दौड़-भाग
सब छोड़कर, धीमी कीजे चाल।
संकट
भी कट जायगा, धैर्य
बनेगी ढाल॥
सुख
तो मन के मूल में, है न
हाट-बाजार।
यश,धन,पद, सम्बन्ध ही, दुख के हैं आधार॥
चिन्तन
करना सीख लो, चिन्ता
भागे दूर।
लोभ-मोह यदि तज सकें, सुख्ख मिले भरपूर॥
पूर्व
धारणा से निकल, यदि
कर सको विचार।
मानसिक स्वतन्त्रता, है चिन्तन आधार।।
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