छल कपट मन माँहि है, पैसा ही भगवान।
मानव कितना मूढ़ है, निज मन मिले न मान।।
धोखा सबको देत है, कपट के रचे विधान।
औरों को बर्बाद कर, निज चाहे कल्याण।।
झूठ पर जीवन टिका, कपट भरा मन माहिं।
मनुआ निज वैरी भया, शान्ति मिलेगी नाहि़।।
समझे थे, ज्ञानी हुये, यही बड़ा अज्ञान।
ज्ञान खोज में जन मिटे, खोज रहा जग ज्ञान॥
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