संन्यास नहीं भागना, संन्यास नहीं त्याग।
रोना-धोना छोड़कर, छोड़ो भागम भाग॥
सहज राह जीवन चले, कर न किसी की चाह।
पथिक अकेला चल पड़े, मिलती जाती राह॥
जीवन है बहती नदी, मरा गया ठहराय।
अपना कुछ भी है नहीं, क्यों तू फ़िर घबराय॥
रिश्ते पद अब बन गये, घर का नहीं निशान।
अपना किसको कह सकें, अच्छा है शमसान॥
रिश्ते तो धोखे हुए, स्वार्थ हुआ ईमान।
सदाचार पुस्तक बना, पैसा है भगवान॥
प्रेम का आधार बने, नहीं बना कानून।
झूठ, छ्ल और कपट तो, सिर्फ़ करें बातून॥
सच पर पड़त रही सदा, छली कपट की चोट।
आपने भी एक मार ली, फ़िर भी छिपें न खोट॥
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