Saturday, May 7, 2016

जहां रह वहां मौज कर, ना होंगे हम भ्रष्ट

चन्द क्षणों पीड़ित हुये, सही आपकी चोट।

स्वस्थ हुए फ़िर चल पड़े, नहीं हमारा खोट॥


जीवन सरिता बह रही, कहीं खुशी कहीं गम।

खुशी में आसूं निकलें, दुख क्यों आखें नम॥


ना खुशी, न प्रसन्नता, न आनन्द के भाव।

छल कपट जो जी रहे, मिले न शान्ति ठाव॥


हम मनमौजी राही हैं, सहते रहते कष्ट।

जहां रह वहां मौज कर, ना होंगे हम भ्रष्ट॥


जीवन में हैं छ्ल-कपट, वे दया के पात्र।

जीवन मूल्यों से रहित, ना शिक्षक ना छात्र॥


धन पद यश सम्बन्ध ही, करते हैं कमजोर।

करते झूठा आचरण, आदर्शों का शोर॥


सबको धन की चाह है, दिखती इसमें शान।

कुछ की चाहत मान है, हो सबका कल्यान॥


रंग हीन दुनियादारी, बिना प्रेम के रंग।

होली तो होली होत, अपनों के ही संग॥


चाह गयी, चिन्ता गई, मनुआ बेपरवाह।

जाको कछू न चाहिये, वो ही शहंशाह॥


मित्रों! यह संभव नहीं, क्यूं झेलें संत्रास।

विश्वास बिना मित्र नहीं, कितने भी हों पास॥



सम्बन्धों की कृत्रिमता, कराया है अहसास।

झूठे रिश्ते नाते हैं, ज्यों उड़ जात कपास॥

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