ईश निर्मित हर वस्तु है, कर न किसी का त्याग।
लोभ मोह का त्याग कर, त्याग न रस,रंग,राग॥
किसकी चिन्ता हम करें, ना अपना, जो दूर ।
पथ से अपने ना डिगे, दिखें भले ही हूर॥
शादी है धन्धा बनीं, दहेज ला हथियार।
पति पर केस ठोक कर, मौज लेत संग यार॥
चलते-चलते मत थको, चलना जीवन नाम।
थकना फ़िर विश्राम है, मृत्यु मिले वरदान॥
राही अपनी राह चल, कर न किसी की आस।
मीठा गठरी सूंघ कर, चींटी आवत पास॥
समाज हित जीवन करो, यही होत संन्यास।
आडम्बर को त्याग कर, आत्मा में कर वास॥
सीधा सच्चा जीवन जी रह तनाव से दूर।
लोभ मोह सब छोड़कर जी जीवन भरपूर॥
छल कपट के साथ फ़िरो, लेकर साथ तनाव।
पर्स में लेकर दवा को, कब तक जिये जनाव॥
तुलसी जहां सीख मिली, वहीं से कालीदास।
नारी नर को सीख दे, तू क्यों भया उदास॥
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