Tuesday, June 16, 2015

मासुम सी ख़्वाहिश थी

फ़ेसबुक पर रोजगार समाचार के हवाले से सोनिया 


खटकर द्वारा प्रकाशित पोस्ट मुझे पसन्द आई आप 


भी पढ़िये-


पैर की मोच
और
छोटी सोच,
हमें आगे
बढ़ने नहीं देती ।
टुटी कलम
और
औरो से जलन,
खुद का भाग्य
लिखने नहीं देती ।
काम का आलस
और
पैसो का लालच,
हमें महान
बनने नहीं देता ।
अपना मजहब उंचा
और
गैरो का ओछा,
ये सोच हमें इन्सान
बनने नहीं देती ।
��दुनिया में सब चीज
मिल जाती है,....
केवल अपनी गलती
नहीं मिलती...
�� Some lines with deep meanings. ...
��: बुलंदी की उडान पर हो तो ,
जरा सब्र रखो।
परिंदे बताते हैं कि ,
आसमान में ठिकाने नही होते ।।
��: चढ़ती थीं उस मज़ार पर चादरें बेशुमार ,
लेकिन बाहर बैठा कोई फ़क़ीर सर्दी से मर गया।।
��: कितनी मासुम सी ख़्वाहिश थी इस नादांन दिल की ,
जो चाहता था कि.. शादी भी करूँ और ....
ख़ुश भी रहूँ ।।
��: छत टपकती है उसके कच्चे घर की , वो किसान फिर भी बारिश की दुआ माँगता है ।।
��: तेरे डिब्बे की वो दो रोटिया कही भी बिकती नहीं ,
माँ ...........
होटल के खाने से आज भी भूख मिटती नहीं ।।
��: सीख रहा हूं अब मैं भी इंसानों को पढने का हुनर ,
सुना है चेहरे पे किताबों से ज्यादा लिखा होता है ।।
��: लिखना तो ये था कि खुश हूँ तेरे बगैर भी ,
पर कलम से पहले आँसू कागज़ पर गिर गया ।।
��: " मैं खुल के हँस तो रहा हूँ फ़क़ीर होते हुए ,
वो मुस्कुरा भी न पाया अमीर होते हुये ।।
�� : कैसी लगी, अगर अच्छी लगीं हों तो औरो को भी भेज देना ।
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