Friday, June 27, 2008

जब तक चाहो तुम,साथ चलते जाना।

आगे बढ़ते जाना
जब तक चाहो तुम,साथ चलते जाना।
तुम पर नहीं है मुझको, अधिकार पाना।।

पथ के पथिक हैं, पाथेय तुम ले लो।
नदी है, नौका है, साथ मिल इसे खे लो।
कश्ती हुई पुरानी, भंवर इससे टकरायें,
धैर्य और साहस से ,तूफानों को मिल झेलो।
पथिक हैं जितने भी साथ लेके जाना।
तुम पर नहीं है मुझको, अधिकार पाना।।

समय नहीं है अब, आगे हमको बढ़ना होगा।
कष्ट आयें कितने भी सबको ही सहना होगा।
भटके हुओं की खातिर, यदि कुछ कर पायें,
राह पर लाना है तो ,पास उनके जाना होगा।
हमने तो तुमको, बस अपना साथी माना।
तुम पर नहीं है मुझको, अधिकार पाना।।

हवा में उड़ने की, तमन्ना नहीं रही मेरी।
मधु रस पीने की, तमन्ना नहीं रही मेरी।
श्रम और कौशल से काँटों में भी फूल खिलें,
खिलाकर, पुष्प,चढ़ाने की,तमन्ना रही है मेरी।
बगिया लगाकर के, आगे बढ़ते जाना।
तुम पर नहीं है मुझको, अधिकार पाना।।

1 comment:

  1. पथ के पथिक हैं, पाथेय तुम ले लो।
    नदी है, नौका है, साथ मिल इसे खे लो।
    कश्ती हुई पुरानी, भंवर इससे टकरायें,
    धैर्य और साहस से ,तूफानों को मिल झेलो।
    पथिक हैं जितने भी साथ लेके जाना।
    तुम पर नहीं है मुझको, अधिकार पाना।।
    bahut khubsurat kavita hai,bahut badhai.

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