Sunday, June 15, 2008

अपराधियों का निर्माण अपराधियों का निर्माण

अपराधियों का निर्माण

आज जग्गू धीरे-2 सीधा चला जा रहा था, वह गा¡व छोड़कर कल भागा था। कल से लगातार चलते-चलते थक गया है। गर्मियों के दिन हैं, नंगे पैर हैं पानी के कहीं दशZन नहीं है आ¡खों में निद्रा है या बेहोशी पता नहीं। कुल मिलाकर जग्गू को आज सान्त्वना है वह जानता है कि वह आज जिस रास्ते पर जा रहा है। उसके माध्यम से वह अपनी बहन के हत्यारों से एक न एक दिन बदला अवश्य ले लेगा।उसे इन्तजार है उस दिन का जब चम्बल की घाटी में नये डाकू जग्गू का नाम गू¡जेगा। जब जग्गू चार वषZ का था तो उसके माता पिता उसे एक शरीफ, सज्जन एवं प्रतििष्ठत (जिसकी समाज में इज्जत हो) आदमी बनाना चाहते थे। मा¡ बाप के आशीZवाद एवं अपने परिश्रम से जग्गू शहर का माना हुआ डाक्टर बन गया। आज उसके पास बड़ी दूर-2 से मरीज आया करते थे। मा¡ बाप के सामने ही जग्गू ने घर की स्थिति सभा¡ल ली थी। जग्गू के माता पिता एवं स्वयं जग्गू भी प्रसन्न था। जिस दिन जग्गू के माता पिता का स्वर्गवास हुआ था जग्गू फूट-फूटकर रो पड़ा था। माता-पिता द्वारा दिये गये प्यार को जग्गू कैसे भुला सकता था। जग्गू के एक छोटी सी बहन थी। जग्गू उसे बहुत प्यार करता था, वह उसकी प्रत्येक इच्छा की पूर्ति करने को तत्पर रहता था। जग्गू प्यार में अपनी बहन को पिंकी कहकर पुकारा करता था। वैसे उसकी पूरा नाम प्रेमलता था। जग्गू ने पिंकी को कालेज में दाखिल कर दिया था। वह प्रतिदिन सुबह साढ़े नौ बजे पिंकी को कालेज छोड़ने एवं साढ़े तीन बजे वापस लेने उसके पश्चात ही वह क्लीनिक पर पहु¡चता। वह पिंकी को किसी भी प्रकार कष्ट नहीं होने देता। पिंकी अपने भाई को भाई ही नहीं पिता के समान मानती थी। वह उसका अत्यन्त आदर करती थी। उसे अपनी बहन से ही प्यार नहीं था उससे भी अधिक अपने कर्तव्य से प्यार था। वह एक अच्छे व समाज सेवी डॉक्टर के कर्तव्यों को भली प्रकार जानता व पालन करता था। वह प्रत्येक मरीज की देखभाल इतनी तन्मयता के साथ करता कि उस समय वह अपने को भी भूल जाता। वह जानता था कि डॉक्टर का कर्तव्य होता है मरीज की जी जान से सेवा करें भले ही मरीज उसका दुश्मन ही क्यों न हो। इसी कर्तव्यनिष्ठा के कारण जग्गू आज सम्पूर्ण शहर में मशहूर था। एक प्रतििष्ठत डॉक्टर होने के नाते जग्गू का सम्र्पक अक्सर बड़े-2 अधिकारियों से होता रहता था। जग्गू अपने कर्तव्य पालन में व्यस्त रहता उसे अधिकारियों से कोई लगाव नहीं था। वह स्वयं कर्तव्य पालन करता था उसी प्रकार चाहता था कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन करे। इस वषZ जग्गू के यहा¡ नये जिलाधिकारी ट्रान्सफर होकर आये। जहा¡ तक अनुभव था पुराने जिलाधिकारी के समय जिला प्रशासन व्यवस्थित रूप से चलता था। नये जिलाधिकारी के आते ही प्रशासन का स्तर गिरने लगा था। जग्गू को सुनने को मिलता कि फल¡ा स्थान पर ``निर्दोष राहगीर को पुलिस ने पीटा।´´ या फला¡ स्थान पर कुछ लोगों ने अबोध बालिका के साथ बलात्कार किया-----फला¡ स्थान पर-----। जग्गू ऐसे समाचार सुनकर या पढ़कर दु:खी होता लेकिन वह क्या कर सकता था। पुलिस ने प्रत्येक दुकानदार से मासिक चौथ वसूलना प्रारम्भ कर दिया था। कोई दुकानदार पुलिस द्वारा वसूली का विरोध करता तो पुलिस उसे थाने पकड़कर ले जाती और झूठे मुकदमे मड़ देती। बेचारे निर्दोष नागरिकों की परेशानिया¡ बढ़ती जा रहीं थी। एक दिन जग्गू अपने चिकित्सालय से पिंकी को लेने कालेज जा रहा था कि रास्ते में गाड़ी खराब हो गयी और वह पिंकी को लेने देर से पह¡चा । वह कालेज के गेट पर पहु¡चा ही था कि उसने पिंकी की चिल्लाने की आवाज सुनी वह चौंका उसने सामने ही एक युवक, पिंकी को जबरन अपनी गाड़ी में बिठाने का प्रयास कर रहा था उसके साथ चार गुण्डे और थे। जग्गू का चेहरा क्रोध से लाल पड़ गया वह अपनी गाड़ी खड़ी करके उस युवक के पास पहु¡चा ही था कि युवक के साथियों ने जग्गू को पकड़ लिया और धक्का मारकर एक तरफ गिरा दिया। वह बदमाश जग्गू की बहन को आ¡खों के सामने ही उठाकर ले गये जग्गू रोक न सका। जग्गू पागल सा हो गया वह क्या करे समझ में नहीं आ रहा था। उसे उठने सोचने व निर्णय पर पह¡चने में लगभग आधा घण्टा लगा, वह गाड़ी स्टार्ट कर के थाने की ओर चल दिया। थाना कालेज से एक किलोमीटर दूर था कि उसे गड्ढे में अस्त व्यस्त कपड़ों में पिंकी दिखायी पड़ी वह मानो पागल हो गया था गाड़ी रोककर उसे देखता ही रहा तब तक पिंकी आकर उससे लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी। उन पा¡च गुण्डों ने पिंकी के साथ बलात्कार किया था। वह चिल्ला-चिल्लाकर कह रही थी भैया अब तुम कुछ नहीं कर सकते थाने न जाओ वह एक बड़े पुलिस अधिकारी का पुत्र है। किन्तु जग्गू कानून को इतना गिरा हुआ न समझता था वह पिंकी को साथ लेकर थाने पहु¡चा। उसने लाख मिन्नत की थानेदार की किन्तु थालेदार ने रिपोर्ट न लिखी। उसे थाने से धमकाकर भगा दिया। जग्गू समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। एक ऐसा भाई जिसकी बहन के साथ बलात्कार हुआ हो आखिर चुप कैसे बैठ सकता था। जग्गू को उच्चाधिकारियों से कुछ आशा थी इसलिये जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक के पास िशकायत भेजी किन्तु वहा¡ से भी एण् डीण् के सिवा कुछ प्राप्त नहीं हुआ। जब जग्गू को िशकायत भेजे महीने बीत गये तो उसनेे वकील के माध्यम से मुकदमा चलाने का विचार किया व एक अच्छे वकील को फीस देकर नोटिस दिया। नोटिस पर आखिर कोई न कोई प्रतिक्रिया होनी ही थी। प्रतिक्रिया स्वरूप एक दिन जग्गू के घर पर चार सिपाही आ धमके दरवाजे पर डण्डे पीटे। जग्गू बाहर निकला तो बोले,``चल तुझे सीण् आईण् साहब ने बुलाया हे और प्रकार हो गया जग्गू के साथ मारपीट व धमकी देने का सिलसिला। अब तो जग्गू थाने पर बुलाया जाता मार-पीट कर धमकाया जाता व समझाया जाता कि वह मुकदमा वापस ले ले। मुकदमा वापस ले ले वरना हम तुझे दस्यु विरोधी अधिनियम में जेल भेज देगेंं। तेरा घर चौपट हो जायेगा किन्तु मुकदमा वापस लेने को राजी नहीं हुआ। उसे न्याय मिलने की आशा जो थी। जब जग्गू ने मुकदमा वापस लिया तो एक दिन थानेदार साहब आये और जग्गू को थाने में ले जाकर हवालात में बन्द कर दिया और सलाखों पर डन्डा मारकर विजय पूूर्ण कुटिल मुस्कान में बोले,``हमने बड़े-2 बदमाश ठीक किये हैं।´´ जग्गू किन्तु ``लातों के देव बातों से नहीं मानते।´´ रात्रि को थाने में जग्गू की खूब पिटायी की गयी और सुबह 6 बजे उसे छोड़ दिया। सुबह जग्गू घर पहु¡चा। दरवाजा अन्दर से बन्द था जग्गू ने कई आवाज लगाई व दरवाजे को पीटा किन्तु जब अन्दर से कोई प्रतिक्रिया न हुई तो अनापेक्षित आश¡का से जग्गू के चेहरे पर हवाइया¡ उड़ने लगी। पड़ोसियों की सहायता से दरवाजा तोड़ा गया। दरवाजा टूटने पर जब जग्गू बेड रूम में पहु¡चा तो वहा¡ का दृश्य देखा तो जग्गू के काटो तो खून नहीं पिकीं अस्त व्यस्त हालत में पड़ी थी उसने जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी पास में पिकीं के हाथ का लिखा हुआ पत्र पड़ा था जिसमें लिखा था-प्रिय भैया , अब में इस संसार से परेशान हो चुकी हू¡। एक ऐसी दुनिया में जा रही हू¡ जहा¡ स्त्री को केवल उपभोग की वस्तु नहीं समझा जाता। तुम्हारे जाने के बाद वही लड़का आया था जिसने पूर्व में मेरी इज्जत लूटी थी। आज भी मेरे साथ मु¡ह काला किया और यह कहकर चला गया कि कह देना अपने भैया से लड़े मुकदमा और लड़े। भैया कानून अन्धा है तुम अब मेरी मृत्यु का समाचार भी पुलिस को न देना। तुम्हारी अभागिन पिकीं जग्गू ने पत्र पढ़ा। पत्र पढ़ते-2 उसका चेहरा कठोर हो चुका था। इस कानून से विश्वास उठ चुका था। जग्गू पिकीं की लाश को उसी हालत में छोड़कर भागा जा रहा था। भागा जा रहा था और उसके पैर चम्बल की खािड़योंं की तरफ बढ़ रहे थे।

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