Wednesday, June 18, 2008

लालच का फल

मुकुंदपुर एक छोटा सा गांव था। गांव में ठाकुर रहते थे। अत: मुकुन्दपुर ´´ठाकुरों का नगला इस नाम से भी जाना जाता था। गांव के सभी लोग खेती का काम करते थे। गांव के किसानों की स्थिति सम्पन्न नहीं तो अच्छी थी यह तो कही ही सकते है। इसी गांव के पुरोहित पण्डित जी बगल के गांव में रहते थे। मुकुन्दरपुर में एक छोटा सा परिवार था जिसमें केवल दो सदस्य थे। स्वयं ठाकुर रामसिंह एवं उनकी नई नवेली पत्नी रामदेई। घर के सभी काम काज को निपटाकर वह दरवाजे पर आ बैठी थी। बेचारी करती भी क्या ? ठाकुर रामकिसं भोर पांच बजे ही खेत पर निकल जाता था। ठकुराइन को दोपहर बारह बजे खाना खेत पर पहुंचाना होता। सुबह का कलेवा पहुंचाने के लिए ठाकुर मना ही कर गया थ। ठाकुर ठकुराइन को बहुत स्नेह करते थे। खेत दूर था। अत: उसे बार-बार परेशान करना उचित न था।सुबह सुबह पण्डित जी घोड़ी पर सवार गांव में आ गये, जरूर अगले गांव में जा रहे होगें। पण्डित जी को प्रणाम कर घोड़ी से उतर कर विराजने का आग्रह किया। पण्डित जी रस पानी पीकर ही आगे बढ़ो, पण्डित ने ठकुराइन के स्नेह अभरे आग्रह को ठुकराना उचित न समझा। पण्डित जी ने घोड़ी दरवाजे पर बांधी तब तक ठकुराइन पण्डित जी के लिए आंगन में चारपाई डालकर घोड़ी के आगे घास डल चुकी थी। गांव के सीधे-सादे लोग पण्डित जी के साथ-साथ पण्डित जी की घोड़ी को भी पूज्य समझते थे। पानी-वानी पिलाय के व कुशल-क्षेम पूछने के बाद ठकुराइन बोली महाराज, ``आप तो भूत, भविष्य, वर्तमान सब जानते हो, सो कृपा करिके हमारे दिन देख कर यह बताओें कि हमारे उनके और मेरे दिन कैसे चल रहे है। पण्डित जी ने पहले तो थोड़ी सी ना नूकर करी। लेकिन जब ठकुराइन ने पण्डित जी के चरणों में सवा पांच रूप्ये रख दिये तो पंचाग निकाल कर दिन बताने लगें।पण्डित जी बोले, ´´ठकुराइन और तो सब ठीक है, किन्तु आज को दिन तेरे लिये ठीक नहीं। शनि और राहू को योग है पिटाई होइवे की सम्भावना अधिक है। बेचारी ठकुराइन घबड़ा गई। वह आज तक ठाकुर के यहां बडे़ ही प्रेम पूर्वक रह रही थी। वह घबड़ा कर पण्डित जी के चरण पकड़कर बोली।´´महाराज जब आपने इतनी कृपा करी कि हमारे घर पर पधारे और दिन बतायें। आप तो बहुत ही विद्वान है। याको कोई न कोई उपाय भी अवष्य होइगो। कृपा करिके उपाय बताओं। पण्डित जी महाराज पहले तो कुछ चिन्तित हुए किन्तु अचानक उनकी आंखों मे चमक आ गई। आज के दिन के लिए किसी ने पण्डित को निमन्त्रण भी नहीं दिया था। अत: उन्होंने सोेचा आज का निमन्त्रण पक्का कर लिया जाय।पण्डित जी गम्भीर होते हये बोले, ``ठकुराइन शनि को प्रकोप कठिन है इस से बचने को उपाय तो है। लेकिन तू कर नहीं पायेगी।ठकुराइन कुछ आष्वस्त होकर बोली `` महाराज बताओं तो सही ऐसो कौन सौ उपाय है, जाय मैं करि नाय सकूं।``पण्डित जी बोले ठकुराइन `` आज की तिथि में अगर काऊ विद्वान ब्राह्मणको भोजन करा दे तो तेरे ऊपर से शनि को प्रकोप टल सके। अब मैनें तौकू उपाय बताय दियो, अब मैं चलू हु¡।ठकुराइन ने तुरन्त पण्डित जी के पैर पकड़ लिये `` महाराज ये कोई कठिन काम नाय¡, हमा तुम्हारे जिजमान है। यह तो आप जानो कि हम आपके सिवा और काहू कूं नाय बुलावें। यह तो आप देख ही रहे हो कि घर से ठाकुर साहब है नाय। आपको बुलाइवे कौन जावेगा। कृपा करिके दस मिनट ठहरो। दूध गर्म हो रहयो है वामे चावल डाल के खीर बनाऊ¡। कढ़ाई में घी देकर पूड़ी निकालू¡।पहले तो पण्डित जी राजी न हुए किन्तु जब ठकुराइन ने अधिक आग्रह कि तो उसकी मजबूरी को समझकर बोले, अच्छा मैं यहा¡ बैठो हु¡, तू जल्दी कर सब्जी बनाइयो मत, नहीं तो देर लगेगी। खीर में चीनी अधिक डाल दियो। मैं वाई ते पूड़ी खइ लुंगो। पण्डित जी को चारपाई पर बिठाकर पण्डित जी के लिए ठकुराइन रसोई बनाने लगी। दूध गर्म था चावल डाल दिये, खीर बनने में कोई देर नहीं लगी। आटा भी बना हुआ था तुरन्त पूड़ी भी बनाली। थाली लगाते समय चीनी डालने में ठकुराइन ने कंजूसी की, व पण्डित जी को भोजन कराने बिठा कर पड़ोस से सब्जी लेने चली गई।पण्डित जी को कम मीठी खीर अच्छी न लगी। वह ठकुराइन को मन ही मन गाली देने लगे। फिर यह सोचकर ठकुराइन नेजिस बर्तन में से चीनी डाली थी वह रसोई में ही रखा है। उसमें से उठकर चीनी डालने में कोई हानि नहीं पंडित जी अपने स्थान से खड़े होकर रसोई में गये। रसोई में एक जैसे दो बर्तन थे एक में तो चीनी थी एक में नमक, पण्डित जी ने नमक को ही चीन समझा और मन भरक चीनी डाली।पण्डित जी ने जब पुन: आकर भोजन प्रारम्भ किया तो खीर मु¡ह में भी रखी जाये। पण्डित जी चक्कर में पड़ गये। आधी छोड़ एक कू धायें, दोनौ में एक भी ना पाये। अब क्या किया जाय ? यह खीर नहीं खाई जा रही है। अत: पण्डित जी ने खी को फेंकने का निर्णय लिया। फेंकने की भी समस्या पण्डित जी खीर फेंकने का स्थान देखने लगे। ठाकुर के आंगन में एक कुआ था। पण्डित जी ने तुरन्त सोचा क्यों न यह खीर कूए में डाल दी जाय। पण्डित जी ने खड़े होकर कूएं में खीर डालने का काम किया कि खीरके साथ पण्डित जी के हाथ से थाली भी छूटकर कूंए में जा गिरी।क्या किया जाय ? ठकुराइन आ गई तो चक्कर पड़ जोगा यह सोचकर पण्डित जी ने थाली निकालने के लिए कूए में उतरने की योजना बनाई। पण्डित जी ने रस्सी कूए के पास बांधी व उसे पकड़ कर कूए में उतरने लगे। रस्सी काफी पुरानी थी पण्डित जी का दुभाZग्य पण्डित जी के नीचे पहूंचने से पहले ही रस्सी टूट गयी खैर भगवान का शुक्र था पण्डित जी को कोई चोट नहीं आयी।ठकुराइन को पड़ोस से सब्जी लाने में देर हो गई, जब ठकुराइन सब्जी लेकर वापिस आई तो वहां पण्डित जी को न देख सन्न रह गयी। ठकुराइन पण्डित जी को इधर-उधर देखने लगी। घोड़ी अभी तक दरवाजे पर खड़ी घास खा रही थी अत: पण्डित जी के जाने का तो सवाल ही नहीं था, वह बैचेनी से इधर-उधर देखने लगी ठकुराइन की नजर अचानक कूऐ की तरफ गई तो पण्डित जी के जूते एवं बंधी हुई रस्सी दिखाई दी। पण्डित जी को कूऐ में आवाज लगाई तो पण्डित जी बोले, `` ठकुराइन कोई रस्सी लेके पहले मोकू निकाल लें, बाद में बात बताऊ¡गो।ठकुराइन ने घर में से नई रस्सी निकाली व रस्सी पकड़ कर कूएं की मेढ़ पर खड़ी को गई। पण्डित जी को कूएं से निकलने की जल्दी थी उन्होंने यह ध्यान नहीं दिया कि ठकुराइन ने रस्सी बांधी है या नहीं। पण्डित ने जैसे ही रस्सी पकड़ी ठकुराइन झुक कर तो खड़ी ही थी झटके के साथ कूएं में जा गिरी। किन्तु इतनी भगवान की कृपा थी कि अब भी ठकुराइन या पण्डित जी के कहीं चोट नहीं आयी थी।ठकुराइन व पण्डित जी दोनों को कूए में काफी समय हो गया दोपहर का एक बज चुका था। खेत पर ठाकुर रामसिंह ठकुराइन का इन्तजार करते-करते परेशान हो गया तो अपने बैलों को पेड़ से बांध पैना (बैलों को छांकने वाला) लेकर अपने घर आया। दोपहर का समय था। ठाकुर का मुंह गुस्से से लाल हो रहा था। किन्तु दरवाजे पर पण्डित जी की घोड़ी को देखकर कुछ आश्वस्त हुआ। कोई बात नहीं पण्डित जी आ गये है। इसी कारण से से ठकुराइन खेत पर न आ सकी। ठाकुर पण्डित जी का बहुत आदर करता था रामसिंह घर में घुसा तो दखा दरवाजा खुला पड़ा है किन्तु ठकुराइन व पण्डित जी कहीं दिखाई नहीं दे रहे। वह रसोई में गया तो खीर पूड़ी बनीं रखी है। ठाकुर रामसिंह अब झल्लाता हुआ ठकुराइन को खोजने लगा।क्ाफी देर बात रामसिंह की नजर कूएं पर गई। उसने रस्सी लटी देखकर आश्चर्य से कूएं में देखा। ठकुराइन व पण्डित जी को कूएं में देखकर ठाकुर के गुस्से का ठिकाना न रहा। पूरा घर छोड़कर इनहें रंग-रेलिया¡मनाने के लिये कुआ मिला। पण्डित जी इतने नीच होगें आज से पहले उसने कभी सोचा भी न था। वह गुस्से में हाथ में पैना लेकर ही कूएं में कूद पड़ा। ठाकुरो का गुस्सा तो प्रसिद्ध होता है। उसने गुस्से में पण्डित ही व ठकुराइन को लहूलुहान कर दिया। इसके पश्चात ठाकुर ने जैसे तैसे उन दोंनो को कूए से बाहर निकाला।बहर निकालने के पश्चात बोला, ´´पंण्डित जी महाराज अब बताओ का बात भई हती।``पण्डित जी ने कहा, ´´ भइया ठकुराइन को पिटवे को योग हो। मैंने लालच किया बाकी सजा मिली, लेकिन अब बात कू मत पूछौ।ठाकुर रामसिंह बोला, ´´ पण्डित जी महाराज बात तो बतानी ही पड़ेगी। बिना बात बतायें जाने नाय दु¡गो। पण्डित जी ने सारा किस्सा सुनाया और बोले ठाकुर अगर ठकुराइन ने खीर में चीनी डालवे में लालच नाय¡ किया होतो या मैंने लालच न कियो हा तो काउकी पिटाई नाये होती। लालच का फल बुरा होता है।

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