Saturday, January 9, 2016

आप समाज का झेल न पाईं ताप

आपको भी कभी तो याद आती ही होगी

आँसू भले ही न बहाओ टीस उठती ही होगी

अपने को भुलावे में रखना भी चाहोगी,

कोई इन्तजार में है अभी भी आप जानती ही होगी।


08.11.2007

प्रिय था समानता का नारा आपको

मुझको तो बस प्रिय थीं आप

मुझको तो प्रिय अब भी आपके हैं वे कर्म

आप समाज का झेल न पाईं ताप।

No comments:

Post a Comment

आप यहां पधारे धन्यवाद. अपने आगमन की निशानी के रूप में अपनी टिप्पणी छोड़े, ब्लोग के बारे में अपने विचारों से अवगत करावें.