Friday, February 12, 2016

षड्यन्त्र तुम्हारा है अब मालुम

कथनी और करनी में अन्तर, कैसे होगा किसी से मिलना?


जड़ को काट, पत्तों पर अर्चन, पुष्प नहीं कभी है खिलना!



विश्वास ही जड़ रिश्तों की, विश्वासघात कर रिश्ते सिलना?



शब्द-शब्द में झूठ और धोखा, नहीं हुआ हिये का मिलना!



रिश्तों का सृजन तुम क्या जानों, बर्बादी की तुम हो छलना!



बर्बाद करने को तुम प्रगटीं, तुम्हारे साथ रहें एक पल ना!



प्रेमी तुम्हारे हों कितने भी, तुमको सबको है बस छलना!



झूठ से नफ़रत करते हम, हमें न झूठ के साथ है चलना!


पोल खुलीं, आरोप औरों पर, पैसों बिन तुम्हें पड़े न कलना!



षड्यन्त्र तुम्हारा है अब मालुम, मित्र नहीं, नहीं हमें मिलना!

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