Tuesday, February 16, 2016

आओ सभी नर और नारी


समानता का नारा,
लगता बहुत प्यारा,
उठते जो प्रश्न,
करते सभी किनारा।
समानता: एक कृत्रिम शब्द,
यथार्थ में, दिखती नहीॅ समानता
किसी भी पदार्थ में।
यहॉ तक कि एक ही व्यक्ति के,
दो अॅगों में भी नहीॅ होती समानता,
हर स्थान पर है असमानता,
यह असमानता जरूरी है,
क्यों कि यही करती सृष्टि को पूरी है।
सभी एक-दूसरे के बिन अधूरे हैं।
आपस में मिलकर ही होते सब पूरे हैं।
विभिन्न असमानतायें मिलकर ही
पूर्णता की ओर ले जाती हैं।
समानता एक यक्ष प्रश्न??
जिसका उत्तर, कब खोज पाया युधिष्ठर??
केवल है प्रश्न, नही है उत्तर
आओ सभी नर और नारी
मिलकर ही शायद
पड़ें प्रश्नों पर भारी।
क्या दो नर, या दो नारी,
आपस में समान होते हैं??
क्या दो जुड़वा भी
एक जैसे महान होते हैं ??
क्षमता, दक्षता या निष्ठा में
अन्य किसी भी विशेषता में।
क्या नहीॅ समेटे होते
कोई न कोई असमानता??
प्रश्न है फिर हम क्यों??
आग और पानी पर समानता थोप रहे हैं।
चॉद और सूरज को,
एक ही तराजू में तोल रहे हैं।
समानता के नाम पर, प्रकृति के सृजन में
क्यों छुरा भोंक रहे हैं??
एक-दूसरे के पूरक,
प्राकृतिक मित्र नर-नारी में
समानता के नाम पर,
जगाकर प्रतिस्पर्धा,
क्यों बना इनको जौॅक रहे हैं??
क्यों नर को लगने लगी नारी- एक वैश्या??
क्यों नारी को लगने लगा नर- जॅगली और भेड़िया??
केवल है प्रश्न, नही है उत्तर
आओ सभी नर और नारी
मिलकर ही शायद
पड़े प्रश्नों पर भारी।
क्यों नारी भ्रूण को,
कोख में ही नष्ट किया जा रहा है??
क्यों मानवता को मिटाया जा रहा है??
क्यों लक्ष्मी को ही किया जा रहा है??
पैतृक सम्पत्ति से वंचित!
वंचित करके दी जाती रही हैं: जो छोटी-छोटी भेंटें।
दहेज के नाम पर गरियाकर,
उनसे भी वंचित किये जाने का
रचा जा रहा है ? षड्यॅत्र??
केवल है प्रश्न, नही है उत्तर
आओ सभी नर और नारी
मिलकर ही शायद
पड़े प्रश्नों पर भारी।
क्यों देखते हैं सदैव पुरुष ही हो बड़ा,
शिक्षा, शक्ति, सामर्थ्य ही नहीॅ,
उम्र में भी।
क्यों शिक्षा से वंचित
किया जाता रहा है- सरस्वती को ही,
क्यों ?शक्ति से वंचित किया जाता रहा हैः
साक्षात शक्ति रूपा नारी को ही।
क्यों धन, शिक्षा,स्वास्थ्य, शक्ति से वॅचित करके??
पिता कर देता है दान: एक वस्तु की तरह!
या फिर बेच देता है: दामाद रूपी ग्राहक को!
और कल्पना करता है कि,
उसकी दान की हुई या बेची हुई पुत्री,
पूजी जायेगी दूसरे घर में??
विवाद की स्थिति में
हो जायेगी निर्वाह-व्यय की हकदार??
क्यों ? क्या है इसके पीछे तर्क??
पति रूपी नर के लिए??
क्या ?शादी करना है अपराध??
जो एक पुरूष,
केवल एक परेपरा के निर्वाह मात्र से,
कुछ पल/दिन/माह/वर्ष के साथ से,
ही पा जाता है पति का तमगा
और विवाद की स्थिति में
मजबूर किया जाता है-
जीवन भर निर्वाह भत्ता देने को।
दोनों ही शिक्षित, दोनों हैं समर्थ,
दोनों का अधिकार,
अपनी-अपनी पैतृक सम्पत्ति में।
दोनों हैं समान तो क्यों कोई
किसी पर निर्वाह व्यय के लिए बने भार!
क्या है इसका आधार ??
केवल है प्रश्न, नही है उत्तर
आओ सभी नर और नारी
मिलकर ही शायद
पड़े प्रश्नों पर भारी।
क्यों चरित्र की परिभाषा,
सीमित है ?शारीरिक सम्बन्धों तक,
क्यों झूठ, कपट, छल, धूर्तता,
रिश्वतखोरी, देशद्रोह, लाटरी, जुआ
और मदिरापान,
चरित्र का निर्धारण करते समय,
विचारणीय नहीॅ होते,
क्या पति-पत्नी द्वारा,
एक-दूसरे पर बलात्कार नहीॅ होते??
क्यों ‘वैश्या’ ? शब्द प्रयुक्त होता है -
केवल स्त्री के लिए,
जबकि पुरुष के बिना
स्त्री कुछ कर ही नहीॅ सकती,
प्राकृतिक व्यवस्था है, स्त्री ?
शारीरिक सम्बन्धों में,
एक सहयोगी होती है, प्रेरक होती है,
किन्तु निष्क्रिय पार्टनर मानी जाती है,
वह नहीॅ कर सकती, पुरुष के साथ,
भौतिक रूप से बलात्कार,
फिर भी वही क्यों दोषी है?
वही क्यों ‘वैश्या’ है?
उसके पास जाने वाले,
उसको वहाँ तक पहुंचाने वाले,
वैश्या की श्रेणी में क्यों नहीॅ आते??
केवल है प्रश्न, नही है उत्तर
आओ सभी नर और नारी
मिलकर ही शायद
पड़े प्रश्नों पर भारी।
क्यों नारी को ही सहारे की मानी जाती है जरूरत,
जबकि पुरुष है हर पल: नारी पर आश्रित,
नहीॅ आ सकता, जमीन पर नारी के बिना,
नहीॅ जी सकता, नारी-दुग्ध के बिना,
चाहिए नारी का स्नेह, दुलार, प्रेम,
मार्गदर्शन व प्रेरणा कदम-कदम पर
नहीॅ चल सकता, नारी के बिना,
एक कदम भी,
नहीॅ सो सकता माँ की लॉरी,
पत्नी की हमसौरी के बिना एक क्षण को भी,
माँ के अभाव में धाय, पत्नी के अभाव में
या फिर वियोग में प्रेमिका,
वह भले ही बाजारू हो या वास्तविक,
नारी ही साथी बनती है।
फिर नर-नारी में समानता की,
प्रतिस्पर्धा क्यों चलती है??
केवल है प्रश्न, नही है उत्तर
आओ सभी नर और नारी
मिलकर ही ?शायद
पड़े प्रश्नों पर भारी।

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