पिता को कितना था रूलाया?
पिता बनकर समझ आया।
क्रोध मेरा,
उन्होंने झेला,
जेब में न था,
एक धेला,
माँगों का था,
बस झमेला
जब मैंने
आँसू बहाया,
दिल मैंने,
कितना दुखाया?
पिता बनकर समझ आया।
अभाव,
उन्होंने,
खुद थे झेले,
मुझको दिखाये,
फिर भी मेले,
मेरी मुस्कराहट की खातिर,
अपने दु:ख थे,
उन्होंने ठेले।
उनको,
कितना था रूलाया?
पिता बनकर समझ आया।
रोया, रूठा, भाग छूटा,
फिर भी
उन्होंने,
न,
तनिक कूटा,
ढूढ़कर वापस ले आये
आँसू पौंछ,
माँ से मिलाये,
खाया न कुछ भी,
बिना खिलाये।
जिद कर,
कितना सताया?
पिता बनकर समझ आया।
पढ़े, लिखें,
आगे बढ़े हम
कर्म उत्तम,
करते रहे हम,
चाह थी बस,
उनकी इतनी,
पूरी कर पाये हैं कितनी?
मारा क्यों था?
मुझमें जूता।
मारकर क्यों था मनाया?
पिता बनकर समझ आया।
भले ही घर से निकालूँ,
भले ही उनको मार डालूँ,
समझेंगे नहीं,
फिर भी पराया,
कहेंगे नहीं,
मुझको सताया।
कितना था ऊधम मचाया?
पिता बनकर समझ आया।
चाहते हैं मुझको कितना?
काश!
तब मैं समझ पाता,
दिल नहीं,
उनका दु:खाता।
ऋण नहीं है,
जो चुकाऊँ,
रकम दे पीछा छुड़ाऊँ।
मेरा नहीं कुछ,
जो दे पाऊँ,
चरणों में खुद को चढ़ाऊँ।
मैंने केवल गान गाया,
पिता बनकर समझ आया।
आओ कुछ पग साथ चलें
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* जीवन का कोई नहीं ठिकाना, कैसे जीवन साथ चले?*
*जीवन साथी नहीं है कोई, आओ कुछ पग साथ चलें॥*
*चन्द पलों को मिलते जग में, फ़िर आगे बढ़ जाते है।*
*स्वार्थ स...
3 weeks ago
nice
ReplyDeleteबढ़िया स्वीकारोक्ति ! शुभकामनायें !
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