Thursday, June 18, 2009

जितने चेहरे मुरझाये हैं , वे सारे खिल जायेंगे

जगमग-जगमग

जगमग-जगमग दीप जलेंगे, ऐसा दिन हम लायेंगे।

जितने चेहरे मुरझाये हैं , वे सारे खिल जायेंगे।।

कहीं न कोई क्षुधित रहेगा, कहीं न कोई तृषित रहे।

अतृप्त आत्मा रहेगी जब तक, सूर्य-चन्द्र भी ग्रसित रहें।

हर बाला शिक्षालय जाये , ऐसा अलख जगायेंगे।

जितने चेहरे मुरझाये हैं , वे सारे खिल जायेंगे।।

मादा भ्रूण अस्तित्व मिटे तो, कैसे सुखी रह पायेगा नर।

दहेज प्रथा न मिटेगी जब तक, कैसे योग्य मिल पायेगा वर।

नारी नहीं सतायी जाये, हर नर को समझायेंगे।

जितने चेहरे मुरझाये हैं, वे सारे खिल जायेंगे।।

सु-शिक्षित हर बच्चा होगा, वस्त्र विहीन न कोई रहे।

हर सिर को आवास मिलेगा, अन्न विहीन न कोई रहे।

पूरीं हों सबकीं आकाँक्षा , सबको गले लगायेंगे।

जितने चेहरे मुरझाये हैं , वे सारे खिल जायेंगे।।

4 comments:

  1. Aisa kalpna lok kahan hoga?

    Aapki "kavita" blog pe tippanee milee.. tahe dilse
    shukriya!

    http://lalitlekh.blogspot.com

    Ya phir

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    is blog pe " Royee aanken magar", ye lekh padhenge, to aapko sawal kaa jawab mil jayega...aise log, jinhon ne jo kaha, usehee nirbhayta se jiya!
    Hame sachhaaee kee qeemat chukanee padtee hai, ye maine unheen se seekha..
    Intezar rahega aapke aagman kaa..!
    snehadar sahit
    shama

    "lalitlekh" blog pe meree kaafee jaddojehad chal rahee hai, aatank wad ko leke.

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  2. दरख्तोंके साये ....
    दरख्तोंके साए ठंडे, ठंडे,
    रुको, रुको कहते गए,
    राहों पे खडी धूप कड़ी,
    राह चलने कहती गयी,
    बार, बार बुलाती रही,
    हम ज़ालिम धूपमे चल पड़े,
    दरख्तों के साए रोकते गए,

    सख्त राहोंपे चलके,
    पैरोंके छाले दुखते गए
    तब कितने याद आए,
    वो प्यारके साए,
    जो रोकते रहे थे!

    वो बाहोंके सिरहाने ,
    बेहद याद आए,
    वो दर्खतोंके तने,
    कितने याद आए!
    दूरतक हमें बुलाते रहे!

    एक दिन थकके
    सोंचा मुड़ जाएँ,
    किस लिए चलें आगे!
    पूछा राह्गीरोंसे
    जो पीछेसे आए,
    क्या दरख्त बुलाते हमें?

    वो कहने लगे,
    चले चलो आगे,
    वो दरख्त नही रहे,
    कैसे मिलेंगे साए?
    पुकारनेवाले नही रहे !

    किस्मत होगी तो मिलेंगे
    तपते रेगिस्तानोमे तुम्हें,
    बहरोंके लुभावन साए,
    तनहा, तनहा चलते गए,
    कहीं नही मिले वो साए!
    दरख्त याद आते रहे!

    जिन्हें हम पीछे छोड़ आए,
    वो बोहोत याद आए
    साए वैसे फिर नही मिले,
    गुज़री आंधियोंमे
    वो दम तोड़ गए!
    दरख्त हमें छोड़ गए...!

    Ye rachana unhee logn ko arpan hai, jinka maine" Royeen aankhen magar" me zikr kiya hai..

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  3. Aaki rachnaye mujhe ek geet yaad dilatee hain, jo meree daadee gungunaya karti theen,

    "meree binake taar hon sabhee jude,
    ek bheenee madhur jhankaar rahe,
    meree matake sirpe taaj rahe..!"

    Mere "kavita" blog pe "Ek Hindustanee kee lalkaar,phir ekbaar", ye 3 rachnayen bhee eksaath padhen...shayad aapko achhee lagen!

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  4. हर बाला शिक्षालय जाये , ऐसा अलख जगायेंगे।
    जितने चेहरे मुरझाये हैं , वे सारे खिल जायेंगे।।
    ... प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!!!

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