Wednesday, November 19, 2008

यहाँ वही है हंसता दिखता, नित रोकर जो गाता है।।

यहाँ वही है हंसता दिखता
स्वार्थ ही हमको नित्य रुलाता, स्वार्थ ही नित तड़फाता है।
यहाँ वही है हंसता दिखता, नित रोकर जो गाता है।।
तू कांटो को फूल समझ ले,
आग को ही तू कूल समझ ले
भूल हुई जो सुधर न सकती,
खुशियाँ अपनी धूल समझ ले।
जो भी बनता साथी यहा¡ पर, रस लेकर उड़ जाता है।
यहाँ वही है हंसता दिखता, नित रोकर जो गाता है।।
हँसने वाले बहुत मिलेंगे
चन्द क्षणो को साथ चलेंगे
सुख-सुविधा जब तक दे पाये
तेरे साथ में चलते रहेगें।
जिसको तेरी चाहत होती, उसको नहीं तू भाता है।
यहाँ वही है हंसता दिखता, नित रोकर जो गाता है।।
मृत्यु मित्र है, आनी ही है,
प्रेम से गले लगानी ही है
स्वार्थ-दहेज की आकांक्ष क्यों?
मृत्यु-प्रेयसी पानी ही है।
दुनिया में जो प्रेम ढूढ़ता, अश्रु वही छलकाता है।
यहाँ वही है हंसता दिखता, नित रोकर जो गाता है।।

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