वह केन्द्र सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय के अन्तर्गत स्वायत्तशासी निकाय द्वारा संचालित आवासीय विद्यालय में हिन्दी का अध्यापक था। उसका कसूर यह था कि वह न केवल स्वयं ईमानदार था वरन अपने अधिकारियों के अनियमित कृत्यों में सहयोग भी नहीं देता था। उसके प्राचार्य व उच्चाधिकारियों ने कई बार उसे समझाने का प्रयास भी किया था कि उसकी नौकरी ईमानदारी पर नहीं, अधिकारियों की आज्ञाओं की अनुपालनाओं पर निर्भर है।
ईमानदारी व खुद्दारी के कारण उसकी नौकरी का प्राबेशन भी चार वष में पूरा हो सका था, उसके बाबजूद वह सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा था। सम्पूर्ण भारत को एक मानने के कारण वह स्थानांतरण के लिए भी कोिशश नहीं करता था। संस्था द्वारा कम से कम स्थानान्तरण की नीति के कारण प्राचार्य महोदय द्वारा उसके स्थानांतरण के लिए किए गये प्रयास भी सफल नहीं हो सकते थे। अत: प्राचार्य महोदय ने विद्यालय से हिन्दी को ही समाप्त करने की योजना बनाई।
प्राचार्य महोदय ने हिन्दी के विकल्प के रूप में कम्प्यूटर विज्ञान प्रारंभ की व सभी छात्रों को प्रोत्साहित किया कि वे हिन्दी छोड़कर कम्प्यूटर साइन्स जो कि एक आधुनिक विषय है और उनके कैरियर के लिए महत्वपूर्ण है , लें । प्राचार्य महोदय के बार-बार समझाने के बाबजूद कुछ छात्र/छात्रा, विशेष कर कला वर्ग के छात्रों को कम्प्यूटर में कठिनाई महसूस हुई और वे हिन्दी में टिके रहे। इस प्रकार प्राचार्य महोदय का हिन्दी हटाओ अभियान का प्रथम चरण असफल रहा।
प्राचार्य महोदय बड़े ही ध्ौर्यवान, मधुरभाषी, नियोजन व प्रबंधन में पटु थे। उन्होंने अपने प्रयत्नों को विराम नहीं दिया। विद्यालय में 14 सितम्बर से 28 सितम्बर तक केन्द्रीय व संभागीय कार्यालय के निर्देशों के अनुरूप हिन्दी पखवाड़ा मनाया जा रहा था। उसी दौरान प्राचार्य महोदय ने एक बार पुन: शारीरिक िशक्षा व कला के िशक्षकों को विश्वास में लिया व उनके सहयोग से छात्र/छात्राओं की काउंसलिंग की तथा उन्हें यह समझाने में सफल रहे कि हिन्दी की अपेक्षा शारीरिक िशक्षा व कला उनके कैरियर के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। जो छात्र उनकी बात से सहमत नहीं हुए उन्हें कहा गया कि क्योंकि यहा¡ हिन्दी के छात्रों की संख्या कम हो गयी है। अत: यदि वे हिन्दी लेते हैं तो उन्हें दूसरे विद्यालय में भेज दिया जायेगा या वे अपना स्थानान्तरण प्रमाण पत्र लेकर किसी दूसरे विद्यालय में जाकर पढ़ सकते हैं। छात्र-छात्राए¡ उनके अप्रत्यक्ष दबाब में आ गए क्योंकि वे न तो स्थानान्तरण प्रमाण पत्र लेकर किसी अन्य विद्यालय में जाना चाहते थे और न ही प्रवासी छात्र के रूप में उसी संस्था के किसी अन्य विद्यालय में जाना चाहते थे।
प्राचार्य महोदय ने बार-बार छात्रों को यह भी कहा कि वे उन पर कोई दबाब नहीं डाल रहे हैं, वे केवल उनके भविष्य को ध्यान में रखते हुए सलाह दे रहे हैं। इस प्रकार प्राचार्य महोदय बिना किसी प्रकार का अनियमित कार्य किये ही अपने उद्देश्य में सफल हो गये और देखते ही देखते हिन्दी पखवाड़े में हिन्दी समाप्त हो गई।
हिन्दी के अध्यापक महोदय उनकी इसी कार्यशैली के प्रशंसक व वैयक्तिक रूप से प्राचार्य महोदय की प्रशासनिक क्षमता के दीवाने थे।
स्वामी विवेकानन्द के दृष्टिकोण से
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धर्म
*स्वामी विवेकानन्द को हिन्दू संन्यासी कहना एकदम गलत होगा। वे संन्यासी तो
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2 weeks ago
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