Monday, November 24, 2008

राजस्थान की वीर-नारियां :- प्रथम भाग

व्यक्ति से ऊपर समाज है, सबके हित में जीना होगा।
सबका हित जब सधता हो, प्यारे विष भी पीना होगा।

राजस्थान की वीर-नारियां :- प्रथम भाग


भारत एक विकासोन्मुखी देश है। यहाँ के निवासी केवल भौतिक ही नहीं अभौतिक अर्थात आध्यात्मिक विकास की ओर भी जागरूक रहते हैं। हम केवल धन की बात नहीं करते, हमारी संस्कृति व परंपरा धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की बात करती है। हमारे यहाँ शरीर ही नहीं आत्मिक शक्ति के विकास पर पर्याप्त दिया जाता है। आत्मा के स्तर पर सभी प्राणियों को एक ही स्तर पर माना जाता है। आत्मा को परमात्मा का अंश माना गया है तथा प्रत्येक व्यक्ति अपनी आत्मा का विकास करके पूर्णता अर्थात परमात्मा तक पहुँचने के प्रयत्न करके अपने आप को परमात्मा से एकाकार कर सकता है। धर्म, संप्रदाय, जाति या लिंग के आधार पर विकास में कोई अन्तर नहीं होता। नर हो या नारी सभी को उनकी प्रकृति के अनुसार विकास के समान अवसर उपलब्ध होते हैं। परमात्मा के साथ संबन्ध स्थापित करने का मार्ग केवल पूजा-पाठ से होकर ही नहीं जाता, हमारी मान्यता है कि व्यक्ति किसी भी मार्ग से परमात्मा के पास पहुँच सकता है। हमारे यहाँ पूजा को ही नहीं, युद्ध को भी स्वर्ग का साधन माना गया है। भारत भूमि को वीर प्रसू कहा जाता है।
केवल संसार से विराग अर्थात संन्यास ही धर्म का मार्ग नहीं है, युद्ध भी धर्म का का मार्ग है। देश व समाज के लिए युद्ध करते हुए प्राण उत्सर्ग करने वाले भी वीरगति को प्राप्त होते हैं। गीता में भी भगवान कृष्ण भक्ति योग, ज्ञान योग व कर्म योग का उपदेश देते हुए अर्जुन को युद्ध के लिए ही तैयार करते हैं। वस्तुत: सम्पूर्ण जीवन ही एक संग्राम है। इस संग्राम को जो देश व समाज के हित में लड़ते हैं वे इस लोक में ही नहीं परलोक में भी श्रेष्ठ स्थान पाते हैं। ऐसा भारतीय दर्शन का मानना है। वीरता भी धर्म का एक आवश्यक अंग है। वीरता के पथ को अंगीकार करने वाले वीर व वीरांगनाओं की भारत में कमी नहीं रही है।
केवल राजपूतों या राज-परिवारों तक ही वीरता सीमित नहीं होती। आवश्यकता पड़ने पर भारत के किसान भी हल को ही औजार बनाकर आगे आते हैं। हाथों को चूढ़ियों से सजाने वाली भारतीय नारी भी वीरता में कभी पीछे नहीं रही हैं। नारियों ने आवश्यकतानुसार घर को सभांलकर जहाँ पुरूष को शक्तिशाली बनाया है, वहीं आवश्यकतानुसार स्वयं आगे बढ़कर भी दुष्टों को धूल चटाई है। अभिमानियों का अभिमान भंग किया है।
यद्यपि संपूर्ण भारत भूमि ही नर-नारियों की वीरता की कहानी कहती है, तथापि राजस्थान की माटी में बहादुरी व साहस कूट-कूट कर भरा है। यहाँ की नारियों की बात करें तो ये भारत की वीरांगनाओं में विशेष स्थान रखती हैं। वैदिक युग से लेकर मुगल काल तक ही नहीं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी राजस्थान की वीरांगनाओं का योगदान स्तुत्य रहा है। राजस्थान में ऐसी वीरांगनाओं का इतिहास मिलता है जिनके शौर्य और बलिदान की गाथाएँ दन्तकथा बनकर आज भी घर-घर में सुनी जाती हैं। यहाँ माताएं पालने में ही शिशुओं को देशभक्ति की लोरियां सुनाती रही हैं। अपने पति व भाइयों को खुशी-खुशी न केवल लड़ने के लिए युद्ध के लिए टीका लगाकर विदा करती रही हैं वरन् उनके कमजोर पड़ने पर उन्हें धिक्कारा व दुत्कारा भी है। यही नहीं वे युद्धक्षेत्र में उनकी याद करके कमजोर न पड़े इस उद्देश्य से अपना बलिदान भी दिया है। समय-समय पर मातृभूमि की रक्षा के लिए राजस्थान की नारियां बलिदान देने से पीछे नहीं हटी हैं। राजस्थान की नारियों में त्याग व बलिदान की भावना कूट-कूट कर भरी है। अपने परिवार के लिए प्रेम व वात्सल्य की बर्षा करने वाली नारी अपनी व अपने परिवार की आन व शान की रक्षा की खातिर दुर्गा व चण्डी का रूप भी धारण करती है। इस प्रकार के उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है।
राजस्थान की रानी पद्मिनी जहाँ काव्य में सौन्दर्य का प्रतिमान बनकर सामने आती हैं। वही जौहर व्रत के साथ वीरांगना रूप भी देखने को मिलता है। उनके पति युद्ध क्षेत्र में नि:श्चिंत होकर मातृभूमि की रक्षा के लिए युद्ध कर सकें, इस उद्देश्य के लिए जीवित ही चिता की भेंट चढ़ जाना, युद्ध क्षेत्र में वीरगति प्राप्त करने से भी अधिक दुष्कर कार्य है। राजकुमारी रत्नावती ने किस प्रकार किले की रक्षा में शत्रु से लोहा लिया और बन्दी सैनिकों के प्रति भी राजधर्म निभाया वर्तमान में बड़े-बड़े तथाकथित देशभक्तों के लिए दा¡तों तले उंगली दबाने वाली बात हो सकती है। वागदत्ता विद्युल्लता द्वारा अपने होने वाले देशद्रोही पति के स्पर्श से बचने के लिए अपने प्राणों का ही बलिदान दे देना, आज के भोगवादी युग में केवल किवदंती लगता है। कुछ आधुनिकाएं इसे मूर्खता भी कह सकती हैं किन्तु इससे उनके बलिदान का मूल्य कम नहीं हो जाता। राज्य के सम्मान के लिए जहर पीने वाली कृष्णा ही नहीं, महाराणा प्रताप को उनके धर्म पर दृढ़ करने वाली बालिका चम्पा के बलिदान वर्तमान भटकती हुई पीढ़ी के लिए आदर्श होने चाहिए। रानी कर्मवती और हाड़ी रानी जैसी राजपुतानियाँ ही नहीं सामान्य वनवासी बालिका कालीबाई व पन्नाधाय जैसी नारियां भी बलिदान देने से पीछे नहीं रहीं। अपनी वीरता व शक्ति के बल पर ही एक सामान्य कृषक कन्या प्रसिद्ध राणा हम्मीर को जन्म दे सकी।

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