करते नहीं, प्रेम का दावा, प्रेम प्रदर्शन नहीं होता है।
प्रेमी वह जो करता अर्पण, प्रेम पात्र के हित जीता है।।
प्रेम नहीं है कोई सौदा।
प्रेम न चाहे कोई हौदा।
बदले की कोई चाह नहीं है,
हृदय गर्भ में उगता पौधा।
हानि-लाभ का गणित नहीं, नहीं रूलाता, खुद रोता है।
प्रेमी वह जो करता अर्पण, प्रेम पात्र के हित जीता है।।
अधिकारों की चाह नहीं है।
अपनी भी परवाह नहीं है।
तुमको खुशियाँ जहाँ हैं मिलती,
रोकेंगे हम राह नहीं है।
प्रेम नहीं प्रतिदान माँगता, बलिदानों को ही बोता है।
प्रेमी वह जो करता अर्पण, प्रेम पात्र के हित जीता है।।
चाहत नहीं थी, कुछ पाने की।
प्रतीक्षा नहीं की, तुमरे आने की।
हमसे दूर हैं तुम्हारी खुशियाँ,
वजह जहाँ हैं मुस्काने की।
जाओ, जहाँ तुम्हें खुशियाँ मिलतीं, आनंद सरोवर नित गोता है।
प्रेमी वह जो करता अर्पण, प्रेम पात्र के हित जीता है।।