Wednesday, April 16, 2025

प्रेम मिलन जब हो जाता है,

कोई हार, कोई जीत नहीं है


गले लगाकर, है ठुकराया, यह तो प्रेम की रीत नहीं है।

प्रेम मिलन जब हो जाता है, कोई हार, कोई जीत नहीं है।।

सबकी चाहत प्रेम है भाई।

लोग भले हों, भले लुगाई।

कोई बताओ प्रेम ये कैसा?

काट-पीट कर काया जलाई।

काम-वासना प्रेम नहीं है, हर कविता भी गीत नहीं है।

प्रेम मिलन जब हो जाता है, कोई हार, कोई जीत नहीं है।।

हमने प्रेम में देना सीखा।

प्रेम कभी ना होता फीका।

प्रेम मधुर है भाव सृष्टि का,

कानूनों से करो न तीखा।

प्रेम पात्र के हित में कर्म है, प्रेम मात्र प्रतीत नहीं है।

प्रेम मिलन जब हो जाता है, कोई हार, कोई जीत नहीं है।।

प्रेम नहीं काया का बिछोना।

जिस पर होता हो बस सोना।

प्रेम त्याग है, प्रेम ही तप है,

अजस्र सरोवर, नहीं खिलोना।

प्रेम में करता जो है सौदा, वह बन पाता मीत नहीं है।

प्रेम मिलन जब हो जाता है, कोई हार, कोई जीत नहीं है।।


Monday, April 14, 2025

नहीं, प्रेम तुम खोजो बाहर,

 खुद ही, खुद से प्रेम करो।


 खुद ही, खुद को समय निकालो, खुद ही खुद के कष्ट हरो।

नहीं, प्रेम तुम खोजो बाहर, खुद ही, खुद से प्रेम करो।।

सबके अपने-अपने स्वारथ।

कोई नहीं करता परमारथ।

जिनसे भी उम्मीद तू करता,

वह ही करते, जीवन गारत।

पल-पल को आनंद से जीओ, प्यारे! पल-पल नहीं मरो।

नहीं, प्रेम तुम खोजो बाहर, खुद ही, खुद से प्रेम करो।।

नहीं कोई अपना, नहीं पराया।

सबने अपना राग सुनाया।

विश्वास बिना जीवन नहीं प्यारे!

विश्वासघात ने जाल बिछाया।

आत्मविश्वास जगा राष्ट्रप्रेमी, खुद पर तुम विश्वास करो।

नहीं, प्रेम तुम खोजो बाहर, खुद ही, खुद से प्रेम करो।।

अन्तर्मन में प्रेम जगाओ।

चाह नहीं, बस प्रेम लुटाओ।

नहीं किसी से चाहत कोई,

नहीं पटो, और नहीं पटाओ।

प्रेम की भूख सभी को यहाँ पर, नहीं किसी का प्रेम हरो।

नहीं, प्रेम तुम खोजो बाहर, खुद ही, खुद से प्रेम करो।।


Saturday, April 12, 2025

नहीं किसी को कभी डराओ

 नहीं किसी से स्वयं डरो


नहीं किसी से  प्रेम की चाहत, नहीं किसी से प्रेम करो।

नहीं किसी को कभी डराओ, नहीं किसी से स्वयं डरो।।

निज स्वतंत्रता सबको प्यारी।

सीमित रखनी, सबसे यारी।

सबके अपने खेल निराले,

सबकी अपनी-अपनी पारी।

जीवन से खिलवाड़ करो ना, नहीं किसी से मेल करो।

नहीं किसी को कभी डराओ, नहीं किसी से स्वयं डरो।।

जीवन जीना है खुलकर के।

रोना भी है,यहाँ हँस करके।

जिस पर भी विश्वास करोगे,

चला जाएगा, वह ठग करके।

सामाजिक कर्तव्य निभाओ, नहीं किसी की जेल करो।

नहीं किसी को कभी डराओ, नहीं किसी से स्वयं डरो।।

प्रेम जाल में कभी न फसना।

नहीं पड़ेगा तुम्हें तरसना।

विश्वसनीय बन, विश्वास न करना,

विश्वासघात से भी है बचना।

नहीं किसी के खेल में फसना, नहीं किसी से खिलवाड़ करो।

नहीं किसी को कभी डराओ, नहीं किसी से स्वयं डरो।।


Thursday, April 10, 2025

महावीर जयंती पर विशेष

पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान


सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान से, सम्यक चरित्र जो पाता है।

पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान, महावीर बन जाता है।।

अनंत चतुष्ट्य का ज्ञान हो जिसको।

अनंत दर्शन और अनन्त शक्ति को।

अनंत वीर्य से, अनंत आनंदित,

अनंत लोक मिलता है ‘जिन’ को।

सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य जुड़ जाता है।

पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान, महावीर बन जाता है।।

अनीश्वरवादी जैन धर्म है।

अनेकांत और स्याद मर्म है।

बद्ध जीव जब मुक्त है होता,

‘निग्रन्थ’ वह मुक्त कर्म है।

दिगंबर और श्वेतांबर मिल, जैन समुदाय कहलाता है।

पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान, महावीर बन जाता है।।

अहिंसा धर्म का मूल मंत्र है।

सम्यक साधना मुक्ति यंत्र है।

बद्ध जीव की मुक्ति हेतु ही,

सम्यक चरित्र का जैन तंत्र है।

स्यादवाद सापेक्ष ज्ञान कह, सत् और असत् बतलाता है।

पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान, महावीर बन जाता है।।


Sunday, April 6, 2025

तन-मन-धन सब मिलकर ही

प्रेम में नहीं भिन्न कुछ होता, एकाकार हो जाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।
तन का मिलन वासना प्यारी।
अलग-अलग रहती है  क्यारी।
तेरा-मेरा धन भिन्न जब तक,
मैं हूँ दूर और तुम हो न्यारी।
मन से मीत मिलन जब होता, एक-दूजे को भाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।
समझ रहा था, मैं अभिन्न हूँ।
तुमने बताया, मैं तो भिन्न हूँ।
तुमको चाह है धन की केवल,
जाना जब से, मन से खिन्न हूँ।
अर्ध-नारीश्वर शिव हो जाते, मन के मीत मिल जाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।
गलतफहमी में मैं था जीता।
तुमने लगाया उसको पलीता।
मजबूर नहीं हो, स्वयं कमातीं,
तुम संपूर्ण हो, मैं हूँ रीता।
मन का मिलन जब है होता, साथ में सोते-खाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।

Saturday, April 5, 2025

फसल और ही ले जाते हैं

पाता नहीं, जो उसको बोता


प्रेम नहीं सबको मिल पाता, सबके ही परिवार न होता।

फसल और ही ले जाते हैं, पाता नहीं, जो उसको बोता।। 

जन्म लिया है, जीना होगा।

संबन्धों में, विष, पीना होगा।

भले ही कोई घर नहीं प्यारे,

बजाना प्रेम से बीना होगा।

दिल खोलकार प्रेम लुटाना, भले ही मिले न प्रेम का सोता।

फसल और ही ले जाते हैं, पाता नहीं, जो उसको बोता।।

अपना नहीं है यहाँ पर कोई।

सबको चाहिए तेरी लोई।

जीवन का सब सार लुट गया,

बची पास है, केवल छोई।

जीवन पथ पर अकेला चलना, साथ न चलेगा सुत या पोता।

फसल और ही ले जाते हैं, पाता नहीं, जो उसको बोता।।

तूने सबको प्रेम लुटाया।

बाँट दिया सब, नहीं जुटाया।

उनके झूठ भी सच हैं प्यारे,

तेरे सच को भी झुठलाया।

नदी नहीं, है सागर गहरा, मौत का जोखिम लगा ले गोता।

फसल और ही ले जाते हैं, पाता नहीं, जो उसको बोता।।

जीवन से क्या पाया तूने?

खुद को ही है लुटाया तूने।

 जिस पर भी विश्वास किया,

विश्वासघात ही पाया तूने।

फसल की चाह त्याग दे प्यारे, सूख गया, जो तूने जोता।

फसल और ही ले जाते हैं, पाता नहीं, जो उसको बोता।।