पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान
सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान से, सम्यक चरित्र जो पाता है।
पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान, महावीर बन जाता है।।
अनंत चतुष्ट्य का ज्ञान हो जिसको।
अनंत दर्शन और अनन्त शक्ति को।
अनंत वीर्य से, अनंत आनंदित,
अनंत लोक मिलता है ‘जिन’ को।
सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य जुड़ जाता है।
पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान, महावीर बन जाता है।।
अनीश्वरवादी जैन धर्म है।
अनेकांत और स्याद मर्म है।
बद्ध जीव जब मुक्त है होता,
‘निग्रन्थ’ वह मुक्त कर्म है।
दिगंबर और श्वेतांबर मिल, जैन समुदाय कहलाता है।
पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान, महावीर बन जाता है।।
अहिंसा धर्म का मूल मंत्र है।
सम्यक साधना मुक्ति यंत्र है।
बद्ध जीव की मुक्ति हेतु ही,
सम्यक चरित्र का जैन तंत्र है।
स्यादवाद सापेक्ष ज्ञान कह, सत् और असत् बतलाता है।
पाकर स्वयं पर विजय वर्धमान, महावीर बन जाता है।।
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