Sunday, April 6, 2025

तन-मन-धन सब मिलकर ही

प्रेम में नहीं भिन्न कुछ होता, एकाकार हो जाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।
तन का मिलन वासना प्यारी।
अलग-अलग रहती है  क्यारी।
तेरा-मेरा धन भिन्न जब तक,
मैं हूँ दूर और तुम हो न्यारी।
मन से मीत मिलन जब होता, एक-दूजे को भाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।
समझ रहा था, मैं अभिन्न हूँ।
तुमने बताया, मैं तो भिन्न हूँ।
तुमको चाह है धन की केवल,
जाना जब से, मन से खिन्न हूँ।
अर्ध-नारीश्वर शिव हो जाते, मन के मीत मिल जाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।
गलतफहमी में मैं था जीता।
तुमने लगाया उसको पलीता।
मजबूर नहीं हो, स्वयं कमातीं,
तुम संपूर्ण हो, मैं हूँ रीता।
मन का मिलन जब है होता, साथ में सोते-खाते हैं।
तन-मन-धन सब मिलकर ही, गीत मिलन के गाते हैं।।

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