Wednesday, June 16, 2021

सभी को हम हैं, मित्र मानते

 सभी को माने सहेली है                       


कण्टक पथ के पथिक हैं हम, खतरों से अठखेली है।

सभी को हम हैं, मित्र मानते, सभी को माने सहेली है।।

साथ में हमने जिसे पुकारा।

हमारे पथ से किया किनारा।

छल, कपट से विश्वास में लेकर,

विश्वासघात का वज्र है मारा।

नहीं साथ कोई आएगा, राह मेरी अलबेली है।

सभी को हम हैं, मित्र मानते, सभी को माने सहेली है।।

नहीं हमारा कोई ठिकाना।

मालुम नहीं, कहाँ है जाना।

साथ में कोई क्यों आएगा?

आता नहीं, स्वार्थ का गाना।

जीवन पथ के सच्चे पथिक हैं, जीवन नहीं पहेली है।

सभी को हम हैं, मित्र मानते, सभी को माने सहेली है।।

हमको घर ना कोई बसाना।

हमको रोज कमाकर खाना।

धन, पद, यश, तुम्हें चाहिए,

हमको पथ ही लगे सुहाना।

कष्टों में पल बड़े हुए हम, मृत्यु से खेला-खेली है।

सभी को हम हैं, मित्र मानते, सभी को माने सहेली है।।

 


1 comment:

  1. आपकी कविता,धोके ,छ्ल ,कपट को उजागर करती है | मैने कई कविताओं में कुछ ऐसा ही देखा है मेरे अनुभव से जो समझ आया है की हमें कोई धोखा नही दें सकता जब तक हम खुद धोखा खाने के लिए तैयार नही होते और ऐसा कब होता है जब हम किसी ना सुनकर अपने मन कु सुनते है | सबको पता है मन बड़ा चंचल होता है इसलिए हर वक्त मन की करें तो कोई भी आसानी से धोखे एवं छ्ल का शिकार हो जाएगा |

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