1 मार्च से बेटे की परीक्षा प्रारंभ हुईं। मनोज ने बड़े प्यार से बेटे को पहली परीक्षा देने भेजा था। बेटा परीक्षा कक्ष में बैठा परीक्षा दे रहा होगा किंतु मनोज उसी के बारे में सोचता हुआ, घर के कामों को निपटा रहा था। बेटे के आने से पहले उसे उसकी इच्छा के अनुसार भोजन जो तैयार करना था। मनोज रसोई का काम भी लगभग पूरा कर चुका था। वह बेटे की प्रतीक्षा करने लगा। तभी उसके क्वाटर की घण्टी किसी ने बजाई। मनोज ने सोचा इतनी जल्दी उसका बेटा कैसे आ सकता है। अभी तो उसकी परीक्षा का समय भी समाप्त नहीं हुआ है। उसका अनुमान सही था। दरवाजे पर उसका बेटा नहीं डाकिया था। डाकिया एक रजिस्टर्ड पत्र लेकर आया था। मनोज ने डाकिया से पत्र प्राप्त किया। लिफाफे पर ही प्रेषक के स्थान पर न्यायालय की मुहर देखकर वह घबड़ा ही गया। जिसका डर था वही हुआ। आज बेटे का पहला प्रश्न पत्र था। अभी किसी भी प्रकार का तनाव उसकी परीक्षाओं में व्यवधान डालने के बराबर ही था।
माया ने अपनी माया दिखा दी थी। उसे मनोज और मनोज के बेटे से क्या मतलब? उसे अपने स्वार्थ की पूर्ति करनी थी और उसका रास्ता तो कोर्ट से होकर ही गुजरता था। मनोज के लिए जीवन का कठिनतम् समय था। जिस बेटे के लिए उसके पिछले पन्द्रह साल सब कुछ सहा है। आज यदि उसे किसी भी प्रकार के तनाव से गुजरना पड़ा तो निसन्देह उसकी परीक्षाओं में उसका निष्पादन प्रभावित होगा। इसके लिए और कोई नहीं स्वयं मनोज ही जिम्मेदार है। मनोज के लिए जिम्मेदारी स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं थी। वह अपनी जिम्मेदारियों से कभी भागने की चेष्टा नहीं की। किंतु प्रश्न यह था कि वह इस समय बेटे के लिए तनाव मुक्त वातावरण किस प्रकार प्रदान कर सकता है?
सबसे पहली बात तो यह थी कि कोर्ट का नोटिस था। वहाँ तो जाना ही था। वहाँ जाने से बचने का कोई रास्ता नहीं था। ऐसी विकट व अनिवार्य परिस्थिति में उसे अपनी बहन का नाम ही याद आया। एक वही एक ऐसी व्यक्ति है जो उसकी समस्या को समझ सकती है और उसकी अनुपस्थिति में उसके बेटे प्रभात को सभाल सकती है। मनोज के बाद प्रभात का भावनात्मक लगाव किसी से था तो वह प्रभात की बुआ ही थी। मनोज ने तुरंत अपनी बहन को फोन पर तुरंत सारी परिस्थिति बताई और तुरंत प्रभात के पास आने के लिए कहा क्योंकि मनोज को दूसरे ही दिन बरेली के लिए निकलना था। मनोज की बहिन की भी शादी हो चुकी थी। वह स्वतंत्र नहीं थी कि मनोज ने कहा और वह तुरंत चल पड़े। उसे भी अपनी ससुराल से अनुमति की आवश्यकता थी। परेशानी यह भी थी कि मनोज की बहन ससुराल में यह सब बता भी नहीं सकती थी क्योंकि मनोज की आनलाइन शादी की बात वहाँ किसी को मालुम न थी। अब सब कुछ बताने का मतलब हंगामा होना ही था। उस समय ऐसा कुछ करना प्रभात के पास आने में रूकावट ही बनता। अतः प्रभात की बुआ अर्थात मनोज की बहिन ने अपने पति को विश्वास में लेकर ससुराल से अनुमति प्राप्त की और दूसरे दिन ही मनोज के पास आने के लिए तैयार हो गयी। मनोज ने यह सब अपने बेटे के परीक्षा देकर आने से पूर्व ही कर लिया था।
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