खोज
जाति वर्ण धर्म धन मद में,ना तुमको कुछ होश रहा है।
ईश्वर को तुम खोज न पाये,ईश्वर तुमको खोज रहा है।।
मन्दिर मस्जिद गिरिजाघर में नित आराधन करते हो।
कथा भागवत नाम कमाते लूट-लूट घर भरते हो।
नित के व्रत उपवास करो और माल चकाचक चरते हो।
असत्य भ्रष्टता इष्ट तुम्हारे गैरों का धन हरते हो।
ईश्वर को निज पक्ष में लाने ब्राºमण का हो भोज रहा है।
ईश्वर को तुम खोज न पाये,ईश्वर तुमको खोज रहा है।।
अरबों का करके घोटाला एक लाख मन्दिर में देते।
तुम्ही बता दो भाई मेरे ईश्वर भी क्या रिश्वत लेते ?
दानवीर फिर भी कहलाते कितने गले हैं तुमने रेते ?
भला न कुछ भी होने वाला दरिद्र नारायण नहीं हैं चेते।
भगवा वस्त्र हैं तूने पहने फिर भी देख उरोज रहा है।
ईश्वर को तुम खोज न पाये,ईश्वर तुमको खोज रहा है।।
सर्वोच्च अदालत ईश्वर की है जहा¡ न कोई रिश्वत चलती ।
सत्य अहिंसा सदाचार की ,मानव धर्म की बेल है पलती।
दूध का दूध पानी का पानी नहीं वका लत यहा¡ है फलती।
सच्चा न्याय सभी को मिलता नहीं कभी भी होती गलती।
कर्म का फल निश्चय ही मिलता भले ही मिन्दर धोक रहा है।
ईश्वर को तुम खोज न पाये,ईश्वर तुमको खोज रहा है।।
आज आपका यह ब्लोग पढा। जैसा नाम है वैसी ही लिखावट है।बहोत पसंद आये आपके विचार।आशचर्य की बात है किसी ने कमेन्ट नहिं दी। बहोत ही सच्ची बात कही है आपने।
ReplyDeleteसर्वोच्च अदालत ईश्वर की है जहा¡ न कोई रिश्वत चलती ।
सत्य अहिंसा सदाचार की ,मानव धर्म की बेल है पलती।
दूध का दूध पानी का पानी नहीं वका लत यहा¡ है फलती।
सच्चा न्याय सभी को मिलता नहीं कभी भी होती गलती।
कर्म का फल निश्चय ही मिलता भले ही मिन्दर धोक रहा है।
ईश्वर को तुम खोज न पाये,ईश्वर तुमको खोज रहा है।।
अभिनंदन आपकी ईस क्विता के लिये।
ईश्वर को तुम खोज न पाये,ईश्वर तुमको खोज रहा है।।
ReplyDeleteरजिया जी ने सच कहा है ! जैसा नाम है वैसा ही लेखन !
अच्छा लिख रहे हैं !