'ये संत दारू पीते हैं और भी न जाने क्या-क्या करते हैं? मैं अपने छात्र-छात्राओं से कहती हूँ कि इनकी बातों में क्या रखा है? इनसे अच्छे प्रवचन तो में दे सकती हूँ?' एक शिक्षिका महोदय अपने शिक्षिक साथी से सी.बी.एस.ई. के एक मूल्यांकन केन्द्र पर कार्य करते हुए कह रहीं थीं।
थोड़ी देर उपरांत वही शिक्षिका महोदया उनसे मुखातिब हुईं , 'सर! मैं अपने भाई के यहाँ ठहरी हूँ। किसी होटल वाले से होटल में ठहरने का बिल बनवा दीजिये न। सी.बी.एस.ई.से होटल में ठहरने का खर्चा तो लेना ही होगा न।' शिक्षक को उनका प्रवचन समझ में आ गया।
कैसा प्यार?
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डॉ.सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी रोते-रोते नेहा का बुरा हाल था। वह स्वयं भी
नहीं समझ पा रही थी कि आज उसे इतना रोना क्यों आ रहा है? समस्याएँ तो वह बचपन
से ही झ...
3 weeks ago
bahut badhiya sant ki baat sabhi ko manana chahiye
ReplyDeleteबिल्कुल सीधी खरी बात।
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