मुस्कान का राज ?
वह सी.बी.एस.ई। से सम्बद्ध केन्द्र सरकार द्वारा संचालित विद्यालय में कार्यरत था। उसी विद्यालय में विद्यालय के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का लड़का भी पढ़ता था। उस लड़के के बारे में सभी अध्यापक आपस में बातचीत करते, ``यह कभी पास नहीं हो सकता, उसे लिखना ही नहीं आता, पास क्या होगा ?, उसके पिता को कौन समझाये ? अच्छा रहे, यदि वह इस बच्चे को यहा¡ से हटाकर किसी हिन्दी माध्यम वाले विद्यालय में भर्ती करा दे, आदि' एक दिन उसने उस बच्चे के पिता को विश्वास में लेकर समझाया कि बच्चे को राज्य के किसी हिन्दी माध्यम वाले विद्यालय में भर्ती करा दे। इस सम्बन्ध में बच्चे के परीक्षा परिणाम व अन्य अध्यापकों के विचारों को भी उसके सामने रखा। रुपये पैसे की समस्या हो तो अपनी तरफ से सहयोग का आश्वासन भी दिया। किन्तु उस कर्मचारी ने उसकी बात को महत्व न देकर, मुस्कराकर कहा, `विचार करूँगा , बच्चे से बात करूँगा ।´ उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह कर्मचारी अपने बच्चे के प्रति गम्भीर होने की जगह मुस्करा क्यों रहा है ? मार्च में सीण्बीण्एसण्ईण् की परीक्षा प्रारंभ हुई। उस दिन दसवीं का पहला प्रश्न-पत्र था। सभी िशक्षक आपस में काना-फूसी कर रहे थे, `और कोई पास हो या न हो, उसका लड़का अवश्य पास होगा, पास ही नहीं होगा, अच्छे अंक भी लायेगा।´ उसने साथी िशक्षकों से जानने की कोिशश की तो पता चला कि उसने जिस कर्मचारी को अपने बच्चे को विद्यालय से हटाने के लिए कहा था। उस बच्चे के स्थान पर कोई दूसरा छात्र परीक्षा दे रहा है। उसने पुिष्ट के लिए विद्यालय के वरिष्ठतम् िशक्षक से पूछा तो मालुम पड़ा कि छात्र के हाथों पर पटि्टया¡ बगैरा बा¡ध कर, चिकित्सक से प्रमाण-पत्र बनवाकर, उसे कृत्रिम रूप से अस्वस्थ दिखाकर, सीण्बीण्एसण्ईण् के नियम के तहत कक्षा 9 के एक योग्य छात्र को उसके पास लिखने के लिए सहायक के रूप में बिठाया गया था तथा उसके बैठने की व्यवस्था भी दूसरी जगह की गई थी। सहायक के रूप में जिस छात्र का चयन किया गया था, उसके बारे मेें सभी अध्यापकों को विश्वास था कि वह न केवल पास होगा, बल्कि अच्छे अंक भी लायेगा। आज उसे उसकी मुस्कराहट का राज समझ में आ गया था। साथ ही यह भी कि वह मुस्कराहट उसकी स्वयं की नहीं बल्कि प्राचार्य महोदय की मुस्कराहट की छाया थी, जिन्होंने उसे अच्छे कार्य के लिए पुरस्कृत करने की योजना बनाई थी। परीक्षा प्रभारी, केन्द्राधीक्षक सहित सभी अधिकारी सहित सभी िशक्षण व िशक्षणेत्तर कर्मचारियों का प्रत्यक्ष व तटस्थ समर्थन प्राप्त था ही।
वह सी.बी.एस.ई। से सम्बद्ध केन्द्र सरकार द्वारा संचालित विद्यालय में कार्यरत था। उसी विद्यालय में विद्यालय के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का लड़का भी पढ़ता था। उस लड़के के बारे में सभी अध्यापक आपस में बातचीत करते, ``यह कभी पास नहीं हो सकता, उसे लिखना ही नहीं आता, पास क्या होगा ?, उसके पिता को कौन समझाये ? अच्छा रहे, यदि वह इस बच्चे को यहा¡ से हटाकर किसी हिन्दी माध्यम वाले विद्यालय में भर्ती करा दे, आदि' एक दिन उसने उस बच्चे के पिता को विश्वास में लेकर समझाया कि बच्चे को राज्य के किसी हिन्दी माध्यम वाले विद्यालय में भर्ती करा दे। इस सम्बन्ध में बच्चे के परीक्षा परिणाम व अन्य अध्यापकों के विचारों को भी उसके सामने रखा। रुपये पैसे की समस्या हो तो अपनी तरफ से सहयोग का आश्वासन भी दिया। किन्तु उस कर्मचारी ने उसकी बात को महत्व न देकर, मुस्कराकर कहा, `विचार करूँगा , बच्चे से बात करूँगा ।´ उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह कर्मचारी अपने बच्चे के प्रति गम्भीर होने की जगह मुस्करा क्यों रहा है ? मार्च में सीण्बीण्एसण्ईण् की परीक्षा प्रारंभ हुई। उस दिन दसवीं का पहला प्रश्न-पत्र था। सभी िशक्षक आपस में काना-फूसी कर रहे थे, `और कोई पास हो या न हो, उसका लड़का अवश्य पास होगा, पास ही नहीं होगा, अच्छे अंक भी लायेगा।´ उसने साथी िशक्षकों से जानने की कोिशश की तो पता चला कि उसने जिस कर्मचारी को अपने बच्चे को विद्यालय से हटाने के लिए कहा था। उस बच्चे के स्थान पर कोई दूसरा छात्र परीक्षा दे रहा है। उसने पुिष्ट के लिए विद्यालय के वरिष्ठतम् िशक्षक से पूछा तो मालुम पड़ा कि छात्र के हाथों पर पटि्टया¡ बगैरा बा¡ध कर, चिकित्सक से प्रमाण-पत्र बनवाकर, उसे कृत्रिम रूप से अस्वस्थ दिखाकर, सीण्बीण्एसण्ईण् के नियम के तहत कक्षा 9 के एक योग्य छात्र को उसके पास लिखने के लिए सहायक के रूप में बिठाया गया था तथा उसके बैठने की व्यवस्था भी दूसरी जगह की गई थी। सहायक के रूप में जिस छात्र का चयन किया गया था, उसके बारे मेें सभी अध्यापकों को विश्वास था कि वह न केवल पास होगा, बल्कि अच्छे अंक भी लायेगा। आज उसे उसकी मुस्कराहट का राज समझ में आ गया था। साथ ही यह भी कि वह मुस्कराहट उसकी स्वयं की नहीं बल्कि प्राचार्य महोदय की मुस्कराहट की छाया थी, जिन्होंने उसे अच्छे कार्य के लिए पुरस्कृत करने की योजना बनाई थी। परीक्षा प्रभारी, केन्द्राधीक्षक सहित सभी अधिकारी सहित सभी िशक्षण व िशक्षणेत्तर कर्मचारियों का प्रत्यक्ष व तटस्थ समर्थन प्राप्त था ही।
अच्छा प्रेरक लेख है।
ReplyDeleteVery good blog. I like it
ReplyDeletebadal