Sunday, March 2, 2008

कविता

कविता कहाँ? अब खो गयी है।
बीज शांति के बो गयी है।
शांति मृत्यु की मानो छाया,
जीवन-विहीन ही चलती काया।
खोया प्रेम, ईर्ष्या नहीं है।
सपने मरे, दिखती न माया।
बेचैनी कहाँ? अब सो गयी है।
कविता कहाँ? अब खो गयी है।
जीने की अब, नहीं है इच्छा।
मृत्यु की भी, नहीं प्रतीक्षा।
चाहते है, संन्यासी जो,
झेल रहा हूँ , वह तितिक्षा ।

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