Friday, February 28, 2025

दिखावे के व्यवहार ने

 हिलाईं समाज की चूल

स्वारथ की इस दौड़ में, अपने को रहे भूल।

दिखावे के व्यवहार ने, हिलाईं समाज की चूल।।

जिह्वा हित भोजन जहाँ।

पौष्टिक तत्व मिलते कहाँ?

शरीर स्वस्थ कैसे रहे?

समय नहीं खुद को जहाँ।

निज हित में जीना हमें, परमारथ का मूल।

दिखावे के व्यवहार ने, हिलाईं समाज की चूल।।

क्या रखा इस होड़ में।

प्रदर्शन की दौड़ में।

तनाव का सृजन करें,

पड़ोसियों की तोड़ में।

खुद को, खुद के कर्म हैं, खुद रहना है कूल।

दिखावे के व्यवहार ने, हिलाईं समाज की चूल।।

दूजों की करते नकल।

घास चरने भेजी अकल।

मोटापा, शुगर और तनाव,

बिगाड़ी है, खुद की शकल।

शूलों का पोषण करें, चाह रहे हैं फूल।

दिखावे के व्यवहार ने, हिलाईं समाज की चूल।।

खुद ही खुद को समय नहीं है।

दूजे करें जो, वही सही है।

औरों की ही सोच है हावी,

अपनी बात न कभी कही है।

जीवन भर औरों को देखा, निज अस्तित्व गए भूल।

दिखावे के व्यवहार ने, हिलाईं समाज की चूल।।


Thursday, February 27, 2025

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है

 साथ मुझे नहीं रहना है



मुझको अपने साथ ही रहना, मुझको तुमसे कहना है।

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है, साथ मुझे नहीं रहना है।।

सुविधाएँ और ऐश चाहिए।

कर्तव्य बिना अधिकार चाहिए।

संबन्धों का व्यापार जहाँ हो,

मुझको ना संसार चाहिए।

झूठ, कपट और प्रदर्शन, सम्बन्ध, नहीं मुझे सहना है।

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है, साथ मुझे नहीं रहना है।।

औरों की मर्जी से जीना।

जहर हुए सम्बन्ध को पीना।

ऐसा कोई कानून नहीं है,

स्वाभिमान का झुका दे सीना।

शिक्षित होकर जो परजीवी, जीवन नहीं है, दहना है।

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है, साथ मुझे नहीं रहना है।।

नहीं चाहिए यश, धन मुझको।

संसार मुबारक तुम्हारा तुमको।

दरिद्रता को गले लगाकर,

बचाना है मुझे तुमसे खुद को।

समय चक्र चलता है नित, किसको? कब? कहाँ? ढहना है।

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है, साथ मुझे नहीं रहना है।।

सीधा पथ कभी तनाव न देता।

व्यक्ति फिर भी नहीं है चेता।

षड्यंत्रों में फँसता खुद ही,

खुद ही अपना गला है रेता।

दुनिया के कहने पर चलता, मानव नहीं, वह शहना है।

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है, साथ मुझे नहीं रहना है।।

संघर्ष में ही बीता बचपन।

संघर्ष में हुए हैं पचपन।

किसी से कुछ भी नहीं छुपाया,

अपना जीवन रहा है दरपन।

वस्त्रों का भी शौक न हमको, किसे चाहिए गहना है?

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है, साथ मुझे नहीं रहना है।।

तुम्हें मुबारक लूटमार है।

तुम्हें मुबारक लोकाचार है।

संबन्धों का व्यापार करो तुम,

मुझको तो स्वीकार हार है।

जीवन की भी चाह नहीं है, नहीं आवरण पहना है।

जो मुझसे संतुष्ट नहीं है, साथ मुझे नहीं रहना है।।


Wednesday, February 26, 2025

नहीं करना है मुझे परमारथ

 मुझको निपट स्वारथी बनना


 खुद को सुखी बनाने के हित, सबका सुख है सृजित करना।

नहीं करना है मुझे परमारथ, मुझको निपट स्वारथी बनना।।

असंतुष्ट जब आस-पास हों।

फसल में, जब घास-पात हों।

कैसे सुखी में रह पाऊँगा?

अपने साथी जब उदास हों।

खुद ही कमाकर खाना है मुझे, नहीं किसी का धन है हरना।

नहीं करना है मुझे परमारथ, मुझको निपट स्वारथी बनना।।

पूजा नहीं किसी की करता।

नहीं किसी का चैन मैं हरता।

प्रकृति का कण-कण शंकर है,

स्वारथी हूँ, सबमें मैं रमता।

स्वच्छ जल और वायु चाहिए, स्वार्थी हूँ, संरक्षण करना।

नहीं करना है मुझे परमारथ, मुझको निपट स्वारथी बनना।।

भ्रष्ट आचरण ना सुख देता।

लोभ-लालच है, नींद हर लेता।

सदाचार से सुख का सृजन,

 कलयुग हो या फिर हो त्रेता।

चतुर और चालाक नहीं मैं, सीधे पथ चल कंटक चुनना।

नहीं करना है मुझे परमारथ, मुझको निपट स्वारथी बनना।।

अन्याय किसी का नहीं है सहना।

हर पल, मुझे, कर्मरत रहना।

पल-पल हो आनन्द का सृजन,

नहीं चाहिए, कोई गहना।

असंतुष्टों से घिर कर प्यारे! नहीं मुझे असंतुष्ट है रहना।

नहीं करना है मुझे परमारथ, मुझको निपट स्वारथी बनना।।


Sunday, February 23, 2025

परिवर्तन ही परिवर्तन है

परिवर्तन जीवन का मूल


स्थिरता तो शब्द मात्र है, इसको ना तुम जाना भूल।

परिवर्तन ही परिवर्तन है, परिवर्तन जीवन का मूल।।

षड् ऋतु आती जाती हैं।

वसंत में कोयल गाती हैं।

ग्रीष्म, वर्षा, शरद चक्र है,

हेमंत और शिशिर, आाती हैं।

कभी नायिका गर्म है होती, कभी नर को करती है कूल।

परिवर्तन ही परिवर्तन है, परिवर्तन जीवन का मूल।।

समय चक्र चलता ही रहता।

बर्फ पिघलती, जल है बहता।

कल तक प्रेमी प्रेम में डूबा,

बिछड़ वही है वियोग को सहता।

प्रयासों से पुष्प पल्लवित, निष्क्रियता बनती है शूल।

परिवर्तन ही परिवर्तन है, परिवर्तन जीवन का मूल।।

अपने आपको भूल गए थे।

उदासीन हो कूल भए थे।

सृजन तो प्रयास से होता,

निष्क्रिय हो हम गूल भए थे।

हमरे पथ में धूल बिछी है, तुमरे पथ हैं प्रेम के फूल।

परिवर्तन ही परिवर्तन है, परिवर्तन जीवन का मूल।।


Sunday, February 2, 2025

जिसे वह सोशल मीडिया कहती है

 घर लौटा वसंत


लगभग

दस माह की

अविरल यात्रा के बाद

थकान, मलिनता और क्लांति के 

भावों को चेहरे पर समेटे हुए

घर लौटा वसंत।

दरवाजे पर

कई बार घण्टी बजाने के वाबजूद

उषा ने नहीं खोला फ्लेट का दरवाजा

वसंत ने अपनी वाली चाबी से

दरवाजा खोलकर 

अंदर जाकर देखा

उसका नहीं था

वहाँ किसी को इंतजार

उसकी तरफ

किसी ने देखा तक नहीं,

उषा तमस के साथ

मोबाइल पर 

चीटिंग में बिजी है

जिसे वह सोशल मीडिया कहती है।


Saturday, February 1, 2025

एलिमनी के बिना तो, तलाक भी नहीं होता

 वसंत

कई दिनों के वियोग

यात्रा की थकान

हो गया था सर्द

बेरोजगारी के दर्द

को समेटे हुए

घर वापस

उषा के पास पहुँचा।

उषा ने देखते ही

मुँह मोड़ लिया,

मुझे नहीं देखना

तुम्हारा पिटा हुआ चेहरा,

मैंने पहले ही कह दिया था

मेरे पास वापस

तभी आना

जब कमाकर कुछ बन जाओ

एसी, लेपटाॅप और आई फोन

खरीदने को धन जुटा पाओ।

बेरोजगारी का रोना रोने वाला 

प्यार क्या जाने?

प्यार के लिए तो पैसा चाहिए

यदि नहीं थी ताकत

कमाकर घुमाने की

तो क्या थी जरूरत

घोड़ी चढ़ आने की।

एलिमनी के बिना तो

तलाक भी नहीं होता।

अगर तुझे

अपनी जान प्यारी है,

तू बाहर निकल

उड़ाता रह तोता।