‘‘ दरअसल, मां-बाप बच्चियों और समाज पर दोषारोपण करके अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकते। अपनी बेटियों को संस्कारित करना, उन्हें अंगुली पकड़कर सही राह पर चलाना अभिभावक का दायित्व है। इतनी-भर स्वतंत्रता उन्हें जरूर मिलनी चाहिए कि वे अपने जीवन के बारे में स्वयं निर्णय लें। परंतु उन निर्णयों में मां-बाप और शिक्षक की सहायक या परामर्शदाता की भूमिका रहनी ही चाहिए।’’
‘‘ सही माने में ये लड़कियां तो हमारे समाज पर कलंक हैं। तालाब के स्वच्छ जल में विचरण करती असंख्य बड़ी-छोटी मछलियों के बीच चंद सड़ी मछलियां हैं। सुगधिंत पके आमों की टोकरियों में एक सड़ा आम है। लाखों युवतियों द्वारा जीवन जगत में किए जा रहे जीवन जगत में किए जा रहे निरंतर संघर्ष पर धब्बा हैं।’’
मृदुला सिन्हा के निबंध मुंह छुपाने की नोबत क्यों? से
‘‘ सही माने में ये लड़कियां तो हमारे समाज पर कलंक हैं। तालाब के स्वच्छ जल में विचरण करती असंख्य बड़ी-छोटी मछलियों के बीच चंद सड़ी मछलियां हैं। सुगधिंत पके आमों की टोकरियों में एक सड़ा आम है। लाखों युवतियों द्वारा जीवन जगत में किए जा रहे जीवन जगत में किए जा रहे निरंतर संघर्ष पर धब्बा हैं।’’
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