Friday, December 19, 2008

सहकर उपेक्षा सदियों से घर को संभालती देकर जन्म ये सृष्टी को तन मन से पालती

मन्दिर की आरती मस्जिद की अजान बेटियाँ गुरुग्रंथ गीता बाईबल कुरान बेटियाँ

हंसती मुस्कुराती खिलखिलाती बेटियाँ

हर मुश्किल को हंस के सुलझातीं बेटियाँ

माँ बाप की आंखों का तारा बेटियाँ

उनके बुढापे का सहारा बेटियाँ
हर अल्फाज़ का इशारा बेटियाँ
हर खुशी का नजारा बेटियाँ
दिल में बस जाती हैं फूलों की तरह
आँखों में समाती हैं सावन के झूलों की तरह
बनाती हैं सबको अपना नहीं दिखती किसी को कोई झूठा सपना
जो कहती हैं करके वो दिखती हैं
हर ग़लत कदम पर आवाज वो उठाती हैं
फिर भी हर बात पर उन्हें ही क्यों रोका जाता है
फीर भी हर बात पर उन्हें ही क्यों टोका जाता है

ग्रीष्माँ शुक्ला










1 comment:

  1. vaah bahut achchaa!
    फिर भी हर बात पर उन्हें ही क्यों रोका जाता है
    फीर भी हर बात पर उन्हें ही क्यों टोका जाता है

    ReplyDelete

आप यहां पधारे धन्यवाद. अपने आगमन की निशानी के रूप में अपनी टिप्पणी छोड़े, ब्लोग के बारे में अपने विचारों से अवगत करावें.