कब तक?
धर्म के नाम पर,
कब तक?
सती होंगी ललनाए¡
जीवन-भर
त्रासदी सहेंगीबाल-विधवाए¡।
धर्म के नाम पर,
कब तक?
संलेखना/संथारा के द्वारा
आत्महत्याए¡
होती रहेंगी।
पढ़ने की उम्र में,
अबोध बालक/बालिकाए¡,
दीक्षा लेकर,
साधु और साध्वी बनती रहेंगी।
यश-अपयश,
लोक-परलोक के नाम पर
कब तक?
गृहस्थ जीवन को
हीन बताया जाता रहेगा।
धर्म के नाम पर,
कब तक?
शाहबानो, गुडिया ,
इमराना, लतीफ़ुन्निसा,
तलाशती रहेंगी अपना वजूद।
बाल-दीक्षित समताओं को,
शादी रचाने के लिए
कब तक?
करने होंगे
चमत्कारों के दिखावे।
धर्म में हो आस्था,
स्वेच्छया हो उसका पालन,
स्वेच्छा से बनें साधु और संन्यासी,
समाज के हित में।
न हो कोई मजबूरी,
न हो कोई दबाब,
जब चाहे,
कर सकें वापसी,
गृहस्थ जीवन में।
कब तक?
मिल पायेगी
स्वतन्त्रता
पूजा की
आराधना की!
आस्था की!
और सबसे आगे बढकर,
जीवन जीने की!
धर्म, कर्म और शिक्षा- विवेकानन्द के सन्दर्भ में
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शिक्षा मानव विकास के लिए आधारभूत आवश्यकता है। इस तथ्य पर सार्वकालिक
सर्वसहमति रही है। शिक्षा के आधारभूत सिद्धांतों को लेकर विभिन्न समाजों में
मतान्तर रहा...
1 week ago
aacha pryaash
ReplyDeleteतंत्रमंत्र , झाड़फूंक से इलाज करना कानूनन अपराध
ReplyDeleteसंतोष शर्मा
चमत्कारी स्वास्थ्य शिविर
तंत्रमंत्र , जादूटोना , झाड़फूंक , चमत्कार आदि से किसी भी बीमारी से छूटकारा दिलाने का दावा करना कानूनन अपराध है। औषध एवं प्रसाधन अधिनियम १९४० तथा औषधि एवं चमत्कारी उपचार आक्षेपाई विज्ञापन अधिनियम १९५४ के तहत जादूई चिकत्सा करने वाले को जेल व जुर्माना हो सकता है। लेकिन आज भी इस पश्चिम बंगाल में उक्त कानूनों को ठेंगा दिखाते हुए अनेक तथाकथित चमत्कारी बाबाओं , तांत्रिकों , ओझाओं , ज्योतिषियों की अलौकिक या ईश्वरीयशक्ति द्वारा बीमारी से छूटकारा दिलवाने का धोखाधड़ी धंधा धड़ल्ले से चल रहा है। कोई तथाकथित बाबा तो सिर्फ झाड़फूंक से , अन्धे को रौशनी , गूंगे को बोली और बहरे को श्रवण शक्ति प्रदान करने का दावा तक करते हैं। सिर्फ दावा ही नहीं बल्कि इस साथ के चमत्कारी स्वास्थ्य शिविर का बी आयोजन किया जाता है।