अबला-सबला,
हँसना-रोना,
सोना-जागना,
उसको होता हर्ष,
सन्तान का उत्कर्ष।
सरल,विनीत और विनम्र,
सन्तान का सब कुछ क्षम्य,
हृदय है अगम्य,
हो जाये भ्रष्ट,
सन्तान हो ना नष्ट।
व्यष्टि-समष्टि,
सारी ये सृष्टि,
भले ही जायें,
सिद्धियां अष्ट,
सन्तान न पाये कष्ट.
स्वार्थ की व्यापकता, आवश्यकता व अनिवार्यता
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*सामान्यतः स्वार्थ को बड़े ही संकीर्ण और नकारात्मक अर्थ में लिया जाता है।
स्वार्थ के अन्य पर्यायवाचियों में, खुदगर्ज, मतलबी, प्रयोजनव...
3 weeks ago
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