अबला-सबला,
हँसना-रोना,
सोना-जागना,
उसको होता हर्ष,
सन्तान का उत्कर्ष।
सरल,विनीत और विनम्र,
सन्तान का सब कुछ क्षम्य,
हृदय है अगम्य,
हो जाये भ्रष्ट,
सन्तान हो ना नष्ट।
व्यष्टि-समष्टि,
सारी ये सृष्टि,
भले ही जायें,
सिद्धियां अष्ट,
सन्तान न पाये कष्ट.
धर्म, कर्म और शिक्षा- विवेकानन्द के सन्दर्भ में
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शिक्षा मानव विकास के लिए आधारभूत आवश्यकता है। इस तथ्य पर सार्वकालिक
सर्वसहमति रही है। शिक्षा के आधारभूत सिद्धांतों को लेकर विभिन्न समाजों में
मतान्तर रहा...
1 week ago
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