अबला-सबला,
हँसना-रोना,
सोना-जागना,
उसको होता हर्ष,
सन्तान का उत्कर्ष।
सरल,विनीत और विनम्र,
सन्तान का सब कुछ क्षम्य,
हृदय है अगम्य,
हो जाये भ्रष्ट,
सन्तान हो ना नष्ट।
व्यष्टि-समष्टि,
सारी ये सृष्टि,
भले ही जायें,
सिद्धियां अष्ट,
सन्तान न पाये कष्ट.
विवेकानन्द जयन्ती पर विशेष
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क्यों? का नहीं, कर्म करने का अधिकार
स्वामी विवेकानन्द का कार्य अभी भी पूरा नहीं हुआ है। स्वामी जी की जयन्ती पर
हम उनके सपनों को साकार करने के लिए काम करन...
3 days ago
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