लगता है अब चुक गया हूँ।
संघर्ष से अब थक गया हूँ।।
क्रोध अब आता नहीं है।
गान कोई भाता नहीं है।
प्रेम में गर्मी नहीं अब,
उपहार कोई लाता नहीं है।
सोचने अब लग गया हूँ।
संघर्ष से अब थक गया हूँ।।
नवीन पथ अब है न रुचता।
अपने लिए कोई न सजता।
कविता अब है नाराज लगती?
लेखनी को भी गद्य फबता।
मौन रहने लग गया हूँ।
संघर्ष से अब थक गया हूँ।।
असहजता भी सहज है अब।
कृत्रिमता भी भाने लगी अब।
प्रेम की आशा न बाकी,
मजबूरी भी गाती लगे अब।
अकेला रहने लग गया हूँ।
संघर्ष से अब थक गया हूँ।।
भीड़ में मैं चल न सकता।
अपनों से अब लड़ न सकता।
शांति का बन रहा पुजारी,
क्रांति मैं अब कर न सकता।
कपट से काटा गया हूँ।
संघर्ष से अब थक गया हूँ।।
तुम हो अब भी उड़ती तितली।
आने लगीं हों भले ही मितली।
चंचलता को अब तो थामो,
चाउमीन तज खाओ इडली।
रिश्तों से लूटा गया हूँ।
संघर्ष से अब थक गया हूँ।।
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