नर हो या फिर नारी है
इक दूजे के हित ही बने हैं, नर हो या फिर नारी है।
संघर्ष में ना समय नष्ट कर, प्रेम से खिली फुलवारी है।
इक-दूजे के दिल में समाओ।
इक-दूजे पर प्रेम लुटाओ।
इक-दूजे बिन रह नहीं सकते,
इक होकर के भेद मिटाओ।
हाथ थाम दोनों, साथ चलो जब, देखे दुनिया सारी है।
इक दूजे के हित ही बने हैं, नर हो या फिर नारी है।।
अलग अलग क्यों रहे अधूरे।
मिलकर दोनों हो जाओ पूरे,
इक-दूजे के विपरीत चलकर,
हो जाओगे, तुम दोनों घूरे।
प्रेम में कोई माँग न होती, प्रेम के बनो न व्यापारी है।
इक दूजे के हित ही बने हैं, नर हो या फिर नारी है।
प्रेम खेल मिल साथ में खेलो।
कष्टों को मिलकर के ठेलो।
दुनिया जो कहती है कह ले,
साथ में रह वियोग ना झेलो।
साथ-साथ चल कर्म करो, सजाओ जीवन क्यारी है।
इक दूजे के हित ही बने हैं, नर हो या फिर नारी है।
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