Saturday, October 16, 2021

तुम वायदे से, मुकरी मौन हो

 मैं वचनों पर अड़ा  हुआ हूँ


परिस्थितियों की दासी बनीं तुम, मैं तो पथ पर खड़ा हुआ हूँ।

तुम वायदे से, मुकरी मौन हो, मैं वचनों पर अड़ा  हुआ हूँ।।

समय बहुत अब बीत गया है।

यौवन बीता, मन रीत रहा है।

तुमने भले ही भुला दिया हो,

कर प्रतीक्षा, मन मीत रहा है।

तुम संबन्धों की बेल में जकड़ीं, मैं प्रेम की सूली चढ़ा हुआ हूँ।

तुम वायदे से, मुकरी मौन हो, मैं वचनों पर अड़ा  हुआ हूँ।।

यादों में तुम नित आती हो।

सद्य स्नाता, अब भी भाती हो।

अंग-अंग सौन्दर्य टपकता,

स्वर में ज्यों कोयल गाती हो।

वियोग वेदना कितनी भी दे लो, तुम्हारे प्रेम से गढ़ा हुआ हूँ।

तुम वायदे से, मुकरी मौन हो, मैं वचनों पर अड़ा  हुआ हूँ।।

मैंने तो केवल प्रेम किया है।

दूर से भी,  साथ जिया है।

तुम्हारे लिए मैं तड़प रहा हूँ,

तुमको भी तो, मिला न पिया है।

एक बार आ, दर्शन दो प्रिय, प्रेम के पथ पर पड़ा हुआ हूँ।

तुम वायदे से, मुकरी मौन हो, मैं वचनों पर अड़ा  हुआ हूँ।।

अधरों की मुस्कराहट देखूँ।

सौन्दर्य से मैं, आँखें सेकूँ।

एक बार आ गले लगा लो,

तुम्हारे लिए मैं खुद को बेकूँ।

अन्दर लेकर देखो तो प्रिय, तुम्हारे प्रेम से बड़ा हुआ हूँ।

तुम वायदे से, मुकरी मौन हो, मैं वचनों पर अड़ा  हुआ हूँ।।

No comments:

Post a Comment

आप यहां पधारे धन्यवाद. अपने आगमन की निशानी के रूप में अपनी टिप्पणी छोड़े, ब्लोग के बारे में अपने विचारों से अवगत करावें.