Saturday, May 19, 2012

दूर तो मैं आ गया हूँ , पर तुम्हें छोड़ा नहीं है


दूर
             
 भले ही आगे बढ़ रहा हूँ ,किन्तु मुख मोड़ा नहीं है।
दूर तो  मैं आ  गया  हूँ , पर तुम्हें  छोड़ा नहीं है।।

पथ वही जिस पर मिलीं तुम, आज फिर मैं बढ़ रहा हूँ।
भावी पथ कठिनाइयों हित, आज खुद को गढ़ रहा हूँ।
कण्टकों  से  राह  पूरित,  बाधाएं  पग-पग  विछी  हैं।
पर्वतों  सी  ये  हवाएं,  रोक  उन पर  चढ़  रहा  हूँ।
चल पड़ा  हूँ  आज  पथ पर ,तुमसे  हित  तोड़ा नहीं है। 
दूर तो  मैं आ  गया  हूँ , पर तुम्हें  छोड़ा नहीं है।।

विकास का जो मूल पथ है,बाधाओं की, उस पर लड़ी हैं।
सुविधा हित थीं परम्परा कुछ, आज सबकी सब  सड़ी हैं।
अन्धेरा चहुँ ओर  छाया , जाल कैसा   है  बिछाया।
पथिक  को गाड़ी  मिली  जो ,षड्यन्त्रों  से भरी  है।
कण्टकों को चुन रहा  हूँ ,एक  ही रोड़ा   नहीं  है।
दूर तो  मैं आ  गया  हूँ , पर तुम्हें  छोड़ा नहीं है।।

राम-कृष्ण ऋषि दयानन्द ने, मार्ग हमको था दिखाया।
व्यर्थ का  सब वर्ण  भेद  है, कर्म  का  आधार पाया।
अशिक्षा, दहेज, अस्पृश्यता सी, कुरीतियां हमने गढ़ी हैं।
शूद्र  नारी  शोषितों  को,  सदियों से  हमने  सताया।
कोशिशें तो बहुत की हैं, अन्ध तम  फोड़ा  नहीं  है।
दूर तो  मैं आ  गया  हूँ , पर तुम्हें  छोड़ा नहीं है।।

चाहता हूँ इसी पथ पर, साथ-साथ  चल सको  तुम।
कुछ समय विश्राम करके, शक्ति अक्षय  पा सको तुम।
साधना  अभ्यास  करके , क्षमताएं  अपनी  बढ़ाओ।
सत्य पथ के जो  पथिक हों,दैन्य उनका हर सको तुम।
लक्ष्य दुर्गम, दीर्घ पथ  है, किन्तु यह  थोड़ा  नहीं  है।
दूर तो  मैं आ  गया  हूँ , पर तुम्हें  छोड़ा नहीं है।।

साथ में तुम चल सको तो  साथ उत्तम  है तुम्हारा।
किन्तु हम  मुस्तैद  रहते, लक्ष्य  ना  भटके  हमारा।
सत्य धर्म समाज  पथ पर ,मन कर्म  से बढ़ सको तो,
चलें साथ  आगे बढ़ें मिल, लक्ष्य  ने  हमको  पुकारा।
विवेक का  अंकुश मधुर  है, समझो यह कोड़ा नहीं है।
दूर तो  मैं आ  गया  हूँ , पर तुम्हें  छोड़ा नहीं है।।

ना किसी का दिल दुखायें, ना कभी अन्याय करते।
सबको ही अपना बनायें, आपदाओं से न डरते।
नशा रूढ़ि अज्ञान से  बच,धर्म पथ बढ़ते रहें  हम।
आज  पथ उनको  दिखायें  जो हजारों बार मरते।
गले  उनको भी  लगायें, तंग  दिल  चौड़ा  नहीं है।
दूर तो  मैं आ  गया  हूँ , पर तुम्हें  छोड़ा नहीं है।।

हम अमर हैं, एक हैं, फिर संयोग और वियोग कैसा? 
अविचल चलें ना डगमगायें,संकल्प है ये पहाड़ जैस।
जातिवाद और बुत-परस्ती, असमानताओं को मिटायें।
कर्म जो  जैसा करेगा,  पायेगा  वह फल भी वैसा ।
ईश से वह जुड़ न सकता, जिसने दिल जोड़ा नहीं है।
दूर तो  मैं आ  गया  हूँ , पर तुम्हें  छोड़ा नहीं है।।

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