Saturday, May 26, 2012


बीकानेर से एक पत्र प्राप्त हुआ है, जो श्री किशार  दास गांधी जी ने लिखा है। उसमें कुछ पीड़ाएं थी तो कुछ आशाएं भी उनके लिये लिखे गए प्रत्युत्तर को यहाँ सार्वजनिक कर रहा हूँ-                    

                                                                                                    26.05.2012


आदरणीय गांधीजी,
                 सादर प्रणाम।
आपका स्नेह आपूरित पत्र व दो पुस्तकें- 1. नारी को अधिकार दो, 2. दिव्य जीवन की ओर, प्राप्त हुईं। बहुत-बहुत धन्यवाद। आभार!
    कल ही माता-पिता के दर्शनों  व बेटे को अपने पास लाने की आकांक्षा से घर के लिए निकलना है। अत: पत्र तुरंत लिखने लग गया, अन्यथा पत्रोत्तर में देरी हो सकती थी।
    आपने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपनी पीड़ा व्यक्त की है। यह सही है कि  भ्रष्टाचार  की मात्रा बढ़ी है, किंतु विरोध भी बढ़ा है। ईमानदारी के लिए बलिदान भी दिए जा रहे है- मंजुनाथ, सतेन्द्र व नरेन्द्र सिंह आदि शहीदों के नाम मीडिया में आये हैं। पिछले माह एक अध्यापक को कार के नीचे कुचलकर इसलिए मार डाला कि वह परीक्षाओं में नकल कराने के लिए तैयार नहीं था।
     इन उदाहरणों से असत्य व दुराचरण की प्रवृत्ति तो उजागर होती ही है। एक यह पहलू भी उजागर होता है कि ईमानदारी पूर्वक अपने कर्तव्य को अंजाम देने वाले कम भले ही हों, हैं अवश्य। गांधी, गोखले जैसे लोग भी हैं किंतु अब देश परतंत्र नहीं है। अत: लोगों की प्रवृत्ति भौतिकवाद की ओर है। सुख-सुविधाओं और प्रदर्शन की भावनाओं के कारण कृत्रिम जीवन जी रहे हैं। इतिहास साक्षी है, सत्य, ईमानदारी और सदाचरण की राह पर पुष्प नहीं कांटे ही मिलते हैं, मिलेंगे भी।
     मार्च 2010 में सरकारी भण्डार से अपने अधिकारी के यहाँ राशन जाता हुआ, पकड़ने और रोकने पर, असत्य आरोप लगाकर मुझे ही निलंबित करवा दिया गया था। उसके बाद ही यहाँ आना हुआ था। किन्तु कर्तव्य का निर्वाह करना है- राजस्थान हो , हरियाणा हो या अरूणाचल।
     हम सत्य, ईमानदारी और न्याय के पाले में खेल रहे हैं। हमें पता है कि विजयमाला हमारे गले में नहीं, फिर भी हम चुनौती अवश्य बने रहेंगे, हारेंगे नहीं और नष्ट भी नहीं होंगे क्योंकि राक्षसी प्रवृत्तियाँ कितनी भी प्रबल हों, सद-प्रवृत्तियों को मिटा नहीं सकतीं।

         यहां पर मेरी एक कविता जो निम्न लिंक पर मिलेगी उपयुक्त रहेगी-

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