Monday, January 6, 2025

रुपए बिन ना संगी-साथी

रुपए बिन ना काज है 


रुपए के सर ताज सजा है, रुपए का ही राज है।

रुपए बिन ना संगी-साथी, रुपए बिन ना काज है।।

रुपए से परिवार हैं बनते।

रुपए से सेहरे हैं सजते।

रुपए से ही बंधु और भगिनी,

रुपए से ईमान हैं ठगते।

रुपए से ही प्रेम विहँसता, रुपए पर ही नाज है।

रुपए बिन ना संगी-साथी, रुपए बिन ना काज है।।

रुपए हित ही लूट मची है।

रुपए हित ही झूठ बची है।

रुपए हित मर्डर होते हैं,

रुपए हित षड्यंत्र रची है।

रुपए हित हैं कपट और धोखे, संबन्धी बनते बाज है।

रुपए बिन ना संगी-साथी, रुपए बिन ना काज है।।

रुपए से शादी होती हैं।

रुपए से बिकती पोती है।

रुपए से हैं गर्भ पालतीं,

रुपए से लज्जा खोती हैं।

रुपए हित ईमान है बिकता, ठगने में ना लाज है।

रुपए बिन ना संगी-साथी, रुपए बिन ना काज है।।




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